हिंदू विवाह अधिनियम के तहत ही निपटाए जाएंगे जैन समाज के वैवाहिक मामले
नई दिल्ली, 24 मार्च 2025 – सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में जैन समाज के विवाहिक मामलों को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत ही निपटाने का आदेश दिया है। अदालत ने कहा कि जैन धर्म हिंदू धर्म से अलग एक विशिष्ट पहचान रखता है, लेकिन कानूनी रूप से यह हिंदू विवाह अधिनियम के दायरे में ही रहेगा।
🔹 सुप्रीम कोर्ट का फैसला और उसकी अहमियत
जैन समाज के कुछ संगठनों ने मांग की थी कि उनके वैवाहिक मामलों को अलग से 'जैन मैरिज एक्ट' के तहत दर्ज किया जाए, ताकि उनके धार्मिक और सांस्कृतिक रीति-रिवाजों का सम्मान हो। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में जैन, बौद्ध और सिख समुदायों को पहले से ही शामिल किया गया है, इसलिए जैन समाज के लिए अलग कानून की जरूरत नहीं है।
🔹 अदालत का क्या कहना है?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा:
✔️ जैन धर्म की विशिष्ट पहचान को नकारा नहीं जा सकता, लेकिन विवाह, तलाक, गोद लेना और संपत्ति संबंधी मामलों में हिंदू विवाह अधिनियम लागू रहेगा।
✔️ संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत जैन धर्म को अलग धर्म के रूप में मान्यता है, लेकिन कानूनी मामलों में इसे हिंदू पर्सनल लॉ के तहत ही रखा गया है।
✔️ जैन समुदाय हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अपने रीति-रिवाजों के अनुसार शादी कर सकता है, और यदि कोई विवाद होता है, तो उसे इसी कानून के तहत सुलझाया जाएगा।
🔹 जैन संगठनों की प्रतिक्रिया
जैन समाज के कई संगठनों ने इस फैसले पर मिश्रित प्रतिक्रिया दी है। अखिल भारतीय जैन महासभा ने कहा कि वे अपने पारंपरिक विवाह पद्धतियों को सुरक्षित रखने के लिए आगे भी कानूनी लड़ाई जारी रखेंगे। वहीं, कुछ संगठनों ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि यह वैधानिक स्पष्टता लाने वाला निर्णय है।
🔹 क्या है हिंदू विवाह अधिनियम, 1955?
हिंदू विवाह अधिनियम भारत में हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्म के लोगों के विवाह, तलाक और गोद लेने से जुड़े मामलों को नियंत्रित करता है। इसके तहत:
📌 सहमति से विवाह अनिवार्य
📌 मोनोगैमी (एक विवाह) का पालन अनिवार्य
📌 तलाक और गुजारा भत्ता का प्रावधान
📌 धर्मांतरण के मामलों में विवाह की वैधता तय करने के नियम
🔹 राजनीतिक और कानूनी असर
इस फैसले का असर सिर्फ जैन समुदाय तक ही सीमित नहीं रहेगा, बल्कि अन्य धर्मों और समुदायों पर भी पड़ेगा जो अपनी अलग पर्सनल लॉ की मांग कर रहे हैं।
✅ कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) की दिशा में एक और कदम है।
✅ वहीं, कुछ लोग इसे जैन समुदाय की स्वतंत्र पहचान के खिलाफ मानते हैं और इसे धार्मिक अधिकारों पर अंकुश बताते हैं।
🔹 निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत में विवाह कानूनों की समानता और एकरूपता को बनाए रखने की दिशा में एक अहम कदम है। हालांकि, जैन समाज के भीतर इसे लेकर अलग-अलग राय बनी हुई है। आने वाले दिनों में इस फैसले के प्रभाव और प्रतिक्रिया पर करीबी नजर रखनी होगी।
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