वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाने की योजना, अभी सिर्फ 3.3%
📅 तारीख: 24 मार्च 2025
भारत ने हाल के वर्षों में वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की दिशा में कई प्रयास किए हैं, लेकिन अभी भी यह सिर्फ 3.3% पर सिमटी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि नीतिगत सुधार, निवेश में वृद्धि और विनिर्माण क्षेत्र को मजबूती देकर इस आंकड़े को अगले कुछ वर्षों में दोगुना किया जा सकता है।
🔹 वैश्विक मूल्य श्रृंखला में भारत की मौजूदा स्थिति
विश्व व्यापार संगठन (WTO) और विश्व बैंक की हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत का वैश्विक मूल्य श्रृंखला (Global Value Chain - GVC) में योगदान केवल 3.3% है, जबकि चीन की हिस्सेदारी 30% से अधिक है। वियतनाम, इंडोनेशिया और थाईलैंड जैसे छोटे देश भी तेज़ी से इस क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं।
"भारत के पास विशाल कार्यबल, सस्ते उत्पादन संसाधन और तेजी से बढ़ता डिजिटल इकोसिस्टम है, लेकिन अभी भी इसे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए रणनीतिक सुधार करने होंगे," – भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग महासंघ (FICCI)
🔹 सरकार की नई रणनीति: PLI योजना से मिलेगा बढ़ावा
भारत सरकार ने उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI - Production-Linked Incentive) के तहत विभिन्न उद्योगों में निवेश को आकर्षित करने का लक्ष्य रखा है। इस योजना से इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, फार्मास्युटिकल और टेक्सटाइल जैसे क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निवेश आया है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक:
- इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण में $10 बिलियन का निवेश आया है।
- सेमीकंडक्टर उद्योग के लिए $20 बिलियन की योजनाएँ लागू की जा रही हैं।
- ऑटोमोबाइल और बैटरी उत्पादन में $6 बिलियन का निवेश हुआ है।
🔹 भारत को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है?
- इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी: भारत में लॉजिस्टिक्स लागत 14% है, जबकि चीन में यह सिर्फ 8-10% है।
- उच्च उत्पादन लागत: बिजली, कच्चा माल और वित्तपोषण की लागत अभी भी भारत में अन्य देशों की तुलना में अधिक है।
- नीतिगत अनिश्चितता: निर्यात और आयात नीतियों में बार-बार बदलाव होने से निवेशकों की रुचि प्रभावित होती है।
- तकनीकी बाधाएं: अत्याधुनिक तकनीकों और स्वचालन (Automation) को अपनाने की गति अभी धीमी है।
🔹 वैश्विक बाजार में भारत की संभावनाएं
हाल ही में भारत और यूरोपीय संघ, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ व्यापार समझौतों को मजबूत किया गया है, जिससे निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। 'मेक इन इंडिया' और 'आत्मनिर्भर भारत' जैसे अभियानों ने भी घरेलू विनिर्माण को गति दी है।
"अगर भारत अगले 5 सालों में अपनी हिस्सेदारी को 3.3% से 6-7% तक ले जाता है, तो यह अर्थव्यवस्था में $500 बिलियन का अतिरिक्त योगदान देगा," – एसोचैम (ASSOCHAM) की रिपोर्ट
🔹 भविष्य की रणनीति: 2030 तक 10% का लक्ष्य
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि भारत इंफ्रास्ट्रक्चर सुधार, व्यापार सुगमता और तकनीकी अपग्रेडेशन पर जोर देता है, तो 2030 तक वैश्विक मूल्य श्रृंखला में हिस्सेदारी 10% तक पहुंच सकती है। सरकार भी रेलवे, बंदरगाहों, और स्मार्ट लॉजिस्टिक्स में निवेश कर इस लक्ष्य को हासिल करने के प्रयास कर रही है।
🔹 निष्कर्ष
भारत के पास वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का केंद्र बनने की पूरी क्षमता है, लेकिन इसके लिए नीतिगत स्थिरता, लॉजिस्टिक्स सुधार और तकनीकी निवेश को प्राथमिकता देनी होगी। यदि यह सुधार किए जाते हैं, तो आने वाले वर्षों में भारत दुनिया के प्रमुख विनिर्माण और निर्यात हब के रूप में उभर सकता है।
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