अनुच्छेद 200 पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राज्यपालों को विधेयकों पर समयबद्ध निर्णय लेना अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल विधेयकों पर अब 'यथाशीघ्र' निर्णय लेने के लिए बाध्य

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल विधेयकों पर अब 'यथाशीघ्र' निर्णय लेने के लिए बाध्य

नई दिल्ली | 9 अप्रैल 2025
सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपालों की शक्तियों को लेकर एक ऐतिहासिक और मार्गदर्शक फैसला सुनाया है। इस फैसले ने राज्यपालों द्वारा विधायिका से पारित विधेयकों को अनिश्चितकाल तक लंबित रखने की प्रवृत्ति पर स्पष्ट रोक लगा दी है।


तमिलनाडु मामला बना आधार

यह फैसला "तमिलनाडु राज्य बनाम तमिलनाडु के राज्यपाल" केस में दिया गया, जिसमें आरोप था कि राज्यपाल द्वारा कई विधेयकों को जानबूझकर मंजूरी नहीं दी गई और उन्हें लंबे समय तक लंबित रखा गया। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल को विधेयकों पर निर्णय "यथाशीघ्र" यानी जल्द से जल्द लेना होगा।


राज्यपाल के विकल्प अनुच्छेद 200 के तहत

संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत, राज्यपाल के पास निम्नलिखित विकल्प होते हैं:

  1. विधेयक पर अपनी सहमति देना,
  2. विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करना,
  3. विधेयक को पुनर्विचार हेतु विधानमंडल को लौटाना।

परंतु अब स्पष्ट किया गया है कि इन विकल्पों पर निर्णय टालने की स्वतंत्रता राज्यपाल के पास नहीं होगी।


पॉकेट वीटो और पूर्ण वीटो पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि राज्यपाल को "पॉकेट वीटो" (विधेयक को अनिश्चितकाल तक रोक कर रखना) और "पूर्ण वीटो" (बिना किसी स्पष्ट कारण के मंजूरी न देना) की अनुमति नहीं है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बाधा मानी जाएगी।


मंत्रिपरिषद की सलाह आवश्यक

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्यपाल को राज्य मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही कार्य करना होगा। उन्हें स्वतंत्र रूप से निर्णय लेने की शक्ति नहीं है, जब तक कि मामला न्यायपालिका की शक्ति को प्रभावित न करता हो।


विधानमंडल द्वारा पुनः पारित विधेयक पर अनिवार्य स्वीकृति

यदि कोई विधेयक राज्यपाल द्वारा पुनर्विचार हेतु लौटा दिया जाता है और उसे विधानमंडल बिना बदलाव के फिर से पारित कर देता है, तो राज्यपाल उस पर अनिवार्य रूप से अपनी सहमति देने के लिए बाध्य होंगे।


कुछ मामलों में अपवाद की अनुमति

यदि कोई विधेयक उच्च न्यायालय या सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक शक्तियों को प्रभावित करता है, तो राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकते हैं। लेकिन ऐसे मामलों में भी प्रक्रिया स्पष्ट और समयबद्ध होनी चाहिए।


सुप्रीम कोर्ट ने समय-सीमा तय की

सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 142 के अंतर्गत अपने विशेषाधिकार का प्रयोग करते हुए यह स्पष्ट किया कि विधेयकों पर राज्यपाल को निश्चित समय-सीमा के भीतर निर्णय लेना होगा। हालांकि यह समय-सीमा कितनी होगी, इसका निर्धारण मामले-दर-मामले किया जा सकता है।


निष्क्रियता की न्यायिक समीक्षा संभव

यदि कोई राज्यपाल संविधान में निर्धारित समयसीमा का पालन नहीं करता और विधेयक को अनावश्यक रूप से लंबित रखता है, तो न्यायालय उनकी निष्क्रियता की समीक्षा कर सकता है। यह लोकतंत्र और उत्तरदायित्व की दिशा में एक बड़ा कदम है।


इस निर्णय के प्रभाव

यह फैसला भारत के संघीय ढांचे में संतुलन बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह विधायिका की गरिमा, राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका और जनता के अधिकारों की रक्षा करता है। इससे राज्यों में विधायी प्रक्रिया तेज होगी और गैर-जरूरी टकराव की संभावनाएं घटेंगी।


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