पौधों की पत्तियों में भी पहुंच गया प्लास्टिक! नया शोध करता है चौंकाने वाला खुलासा
WORLD HEADLINES | पर्यावरण रिपोर्ट | नई दिल्ली
प्रकाशन तिथि: 13 अप्रैल, 2025
आज जब हम प्लास्टिक प्रदूषण की बात करते हैं, तो हमारा ध्यान अक्सर समुद्रों में बहती प्लास्टिक की बोतलों, सड़कों पर बिखरे रैपर्स या कचरे के ढेरों पर जाता है। लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि यह अदृश्य प्लास्टिक — जिसे हम माइक्रोप्लास्टिक्स कहते हैं — हमारी हवा, पानी, मिट्टी और यहां तक कि पौधों की पत्तियों तक पहुंच चुका है?
हाल ही में नेचर जर्नल में प्रकाशित एक अत्यंत महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अध्ययन ने इस विषय पर सनसनीखेज खुलासा किया है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि पौधों की पत्तियाँ हवा में तैरते सूक्ष्म प्लास्टिक कणों को अवशोषित कर रही हैं। यह खोज न केवल हमारे पर्यावरण के लिए गंभीर चिंता का विषय है, बल्कि मानव स्वास्थ्य, खाद्य सुरक्षा और जैव विविधता पर भी दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकती है।
क्या हैं माइक्रोप्लास्टिक्स?
माइक्रोप्लास्टिक्स वे प्लास्टिक कण होते हैं जिनका आकार 5 मिमी से छोटा होता है। जब प्लास्टिक की बड़ी वस्तुएं टूटकर बिखरती हैं, तो वे समय के साथ छोटे-छोटे कणों में बदल जाती हैं जिन्हें हम माइक्रोप्लास्टिक्स कहते हैं। और यदि इनका आकार 1,000 नैनोमीटर से कम हो, तो इन्हें नैनोप्लास्टिक्स कहा जाता है।
इन कणों को हटाना बेहद मुश्किल होता है क्योंकि ये इतने छोटे होते हैं कि सामान्य आंखों से दिखाई नहीं देते, लेकिन इनका प्रभाव बेहद बड़ा होता है।
कैसे अवशोषित करते हैं पौधे माइक्रोप्लास्टिक्स?
अध्ययन में यह पाया गया कि पौधों की सतह पर मौजूद सूक्ष्म संरचनाएं — जैसे कि स्टोमाटा (रंध्र) और क्यूटिकल (पत्तियों की मोमी सतह) — इन प्लास्टिक कणों के प्रवेश का माध्यम बनती हैं।
- स्टोमाटा वे सूक्ष्म छिद्र होते हैं जिनके ज़रिए पौधे गैसों का आदान-प्रदान करते हैं।
- क्यूटिकल एक मोमी परत होती है जो पौधों को जल हानि से बचाती है।
इन दोनों ही संरचनाओं के ज़रिए प्लास्टिक कण पौधों के ऊतकों (टिशू) में प्रवेश कर रहे हैं। शोधकर्ताओं ने पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (PET) और पॉलीस्टायरीन (PS) जैसे प्लास्टिक के कणों की उपस्थिति पौधों में दर्ज की है।
यह दोनों ही प्लास्टिक प्रकार आमतौर पर बोतलों, डिस्पोजेबल कंटेनर्स, कप और कटलरी जैसे उत्पादों में उपयोग किए जाते हैं।
कहां से आते हैं ये माइक्रोप्लास्टिक्स?
माइक्रोप्लास्टिक्स दो प्रकार के होते हैं:
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प्राथमिक माइक्रोप्लास्टिक्स – ये जानबूझकर छोटे आकार में बनाए जाते हैं जैसे:
- टूथपेस्ट और फेसवॉश में इस्तेमाल होने वाले माइक्रोबीड्स
- प्लास्टिक के छोटे-छोटे पेलेट्स जो निर्माण उद्योग में उपयोग होते हैं
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द्वितीयक माइक्रोप्लास्टिक्स – बड़ी प्लास्टिक वस्तुओं के टूटने या घिसने से बनते हैं:
- सिंथेटिक फाइबर वाले कपड़े जैसे पॉलिएस्टर, नायलॉन
- टूटे हुए प्लास्टिक बैग्स, बॉटल्स, कंटेनर्स आदि
हवा, बारिश और धूल के माध्यम से ये कण पौधों तक पहुंचते हैं। खासतौर पर शहरी इलाकों में जहां प्लास्टिक का उपयोग अत्यधिक होता है, वहां ये अधिक मात्रा में देखे जा रहे हैं।
इसका पौधों और कृषि पर प्रभाव
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प्रकाश संश्लेषण में बाधा:
जब प्लास्टिक कण स्टोमाटा को अवरुद्ध कर देते हैं, तो गैसों के आदान-प्रदान की प्रक्रिया प्रभावित होती है, जिससे पौधे की ऊर्जा उत्पादन प्रक्रिया पर असर पड़ता है। -
विकास में कमी:
प्लास्टिक कण पौधे की कोशिकाओं में जाकर उनके विकास को बाधित कर सकते हैं। इससे उत्पादन घट सकता है। -
जड़, तना और फल पर असर:
अब तक के शोध में पत्तियों पर असर देखा गया है, लेकिन वैज्ञानिकों को आशंका है कि ये कण जड़ों और फलों में भी पहुंच सकते हैं, जो सीधे खाद्य श्रृंखला को प्रभावित कर सकता है।
मानव स्वास्थ्य को भी खतरा
जब ये माइक्रोप्लास्टिक्स पौधों के ज़रिए हमारे भोजन में प्रवेश कर जाते हैं, तो यह एक "साइलेंट थ्रेट" बन जाता है। वैज्ञानिक यह मान रहे हैं कि:
- माइक्रोप्लास्टिक्स शरीर में हॉर्मोनल असंतुलन उत्पन्न कर सकते हैं।
- इनमें शामिल रसायन जैसे BPA और PFAS कैंसर और प्रजनन संबंधी समस्याओं से जुड़े हैं।
- इनका लंबे समय तक सेवन लीवर, किडनी और पाचन तंत्र को प्रभावित कर सकता है।
क्या है समाधान?
इस समस्या से निपटने के लिए हमें एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा:
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प्लास्टिक उपयोग में कमी लाएं:
डिस्पोजेबल प्लास्टिक उत्पादों की जगह पुनः उपयोग योग्य और जैविक विकल्पों को अपनाएं। -
प्लास्टिक रिसाइकलिंग को बढ़ावा दें:
सरकारों और स्थानीय निकायों को सख्त कचरा प्रबंधन नीति अपनानी होगी। -
खेती में जैविक विधियों को बढ़ावा दें:
प्लास्टिक मल्चिंग जैसे तकनीकों को नियंत्रित करने की आवश्यकता है। -
नवाचार और शोध:
पर्यावरण से माइक्रोप्लास्टिक्स हटाने के लिए नैनोटेक्नोलॉजी, बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक्स और फाइटोरिमेडिएशन जैसे तरीकों पर शोध ज़रूरी है।
निष्कर्ष: प्रकृति को सांस लेने दें
इस अध्ययन से स्पष्ट हो गया है कि प्लास्टिक प्रदूषण का प्रभाव हमारे सोच से कहीं अधिक गहरा है। अब यह सिर्फ समुद्री जीवों या शहरों की सड़कों तक सीमित नहीं, बल्कि हमारे खेतों और खाने की थालियों तक पहुंच चुका है।
अगर समय रहते उचित कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाली पीढ़ियों को शुद्ध हवा, साफ़ भोजन और स्वस्थ जीवनशैली केवल किताबों में ही मिलेगी।
अब वक्त आ गया है कि हम प्लास्टिक को “सुविधा” नहीं, बल्कि “खतरा” समझें।
लेखक: WORLD HEADLINES पर्यावरण संवाददाता
टैग्स: माइक्रोप्लास्टिक्स, पर्यावरण प्रदूषण, प्लास्टिक कचरा, पौधों की सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, जैव विविधता

