भारत में कैंसर इलाज की सबसे बड़ी चुनौती: संसाधनों और विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी
भारत में कैंसर मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है, लेकिन इसका इलाज करने वाला स्वास्थ्य ढांचा गंभीर रूप से कमजोर है। हर वर्ष लगभग 14.5 लाख नए कैंसर केस सामने आते हैं, जिनमें से करीब 8 लाख लोग इस बीमारी से अपनी जान गंवा देते हैं। ये आंकड़े साफ इशारा करते हैं कि कैंसर अब भारत में एक खामोश महामारी का रूप ले चुका है। खासकर महिलाओं में स्तन और सर्वाइकल कैंसर की दर तेजी से बढ़ रही है और ये दोनों कैंसर सबसे घातक साबित हो रहे हैं। चिंता की बात यह है कि अधिकतर मरीजों को समय पर जांच और इलाज की सुविधा नहीं मिल पाती, क्योंकि देश में रेडियोथेरेपी मशीनों और विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है।
देश में प्रति 10 लाख की जनसंख्या पर एक भी रेडियोथेरेपी मशीन नहीं है, जबकि WHO के अनुसार हर 10 लाख की आबादी पर कम से कम एक मशीन होनी चाहिए। एक अनुमान के अनुसार भारत को वर्तमान में 1,428 रेडियोथेरेपी यूनिट्स की जरूरत है, लेकिन उपलब्ध संसाधनों की संख्या आधी से भी कम है। इतना ही नहीं, देश के लगभग 46% रेडियोथेरेपी सेंटर्स में ब्रेकीथेरेपी की सुविधा उपलब्ध नहीं है, जो सर्वाइकल कैंसर के इलाज के लिए बेहद जरूरी है।
भारत में स्तन कैंसर के मामले न केवल तेजी से बढ़ रहे हैं, बल्कि कम उम्र की महिलाओं में भी यह गंभीर रूप में सामने आ रहा है। जहां अमेरिका में स्तन कैंसर की औसत आयु 61 वर्ष है, वहीं भारत में यह 45 वर्ष के आस-पास देखने को मिल रहा है। इसके अलावा, लगभग 60% महिलाएं एडवांस स्टेज में अस्पताल पहुंचती हैं, जिससे इलाज की जटिलता और मृत्यु दर दोनों ही बढ़ जाते हैं। देश में सिर्फ 3,000 मैमोग्राफी मशीनें हैं, जिनमें से केवल 10% ही डिजिटल हैं। यह स्थिति स्क्रीनिंग और समय रहते निदान में बड़ी बाधा है।
सर्वाइकल कैंसर की बात करें तो यह बीमारी भारत में हर साल लगभग 1 लाख महिलाओं को प्रभावित करती है, और हर 8 मिनट में एक महिला इस कैंसर के कारण दम तोड़ देती है। सबसे बड़ा संकट यह है कि देश में गाइनेक ऑन्कोलॉजिस्ट की संख्या बेहद सीमित है। AIIMS और Safdarjung जैसे संस्थान हर साल केवल 28 विशेषज्ञ डॉक्टर तैयार कर पाते हैं। दूसरी ओर DNB में सिर्फ 16 सीटें हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में कितनी विकट स्थिति होगी, जहां महिलाओं को विशेषज्ञ डॉक्टरों का मिलना लगभग असंभव है।
चौंकाने वाली बात यह है कि दिल्ली जैसे राजधानी क्षेत्र में भी हालत बहुत बेहतर नहीं है। AIIMS, सफदरजंग, DSCI और कुछ चुनिंदा अस्पतालों को छोड़कर ज्यादातर बड़े सरकारी अस्पतालों में रेडियोथेरेपी की सुविधा उपलब्ध नहीं है। यहां तक कि सफदरजंग जैसे प्रतिष्ठित अस्पताल में अब तक सीनियर एक्सीलरेटर मशीन की भी व्यवस्था नहीं हो पाई है।
इसके अतिरिक्त, कैंसर रोगियों खासकर महिलाओं के लिए महिला डॉक्टरों की कमी भी इलाज में बड़ी बाधा बन रही है। पारंपरिक सोच और सामाजिक संकोच के चलते कई महिलाएं पुरुष डॉक्टरों से जांच या इलाज कराने में असहज महसूस करती हैं, जिससे वे देर से अस्पताल पहुंचती हैं और उनका कैंसर एडवांस स्टेज में पहुंच जाता है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में कैंसर के खिलाफ लड़ाई को सिर्फ मेडिकल ट्रीटमेंट तक सीमित न रखते हुए एक व्यापक राष्ट्रीय रणनीति के तहत देखना होगा। इसके लिए जरूरी है कि हर जिले में रेडियोथेरेपी यूनिट्स स्थापित की जाएं, डिजिटल मैमोग्राफी मशीनों की संख्या बढ़ाई जाए, गाइनेक ऑन्कोलॉजिस्ट और रेडिएशन थेरेपिस्ट के लिए अधिक सीटें खोली जाएं और आम जनता में स्क्रीनिंग के प्रति जागरूकता लाई जाए।
अगर भारत को कैंसर से होने वाली मौतों की संख्या कम करनी है, तो उसे केवल इलाज पर नहीं, बल्कि प्रारंभिक जांच, प्रशिक्षित डॉक्टरों की संख्या, और उन्नत उपकरणों की उपलब्धता जैसे पहलुओं पर गंभीरता से ध्यान देना होगा। यह केवल एक स्वास्थ्य संकट नहीं, बल्कि एक सामाजिक और नीतिगत चुनौती भी है, जिसका समाधान आज नहीं निकाला गया तो कल बहुत देर हो जाएगी।

