भारत-फ्रांस राफेल-एम डील 2025: भारतीय नौसेना को मिलेगी नई उड़ान, 26 लड़ाकू विमान खरीदने का बड़ा सौदा
क्या है राफेल-एम (मरीन) और क्यों है यह खास?
राफेल-एम यानी "मरीन" संस्करण, फ्रांस के डसॉल्ट एविएशन द्वारा निर्मित एक अत्याधुनिक मल्टी-रोल लड़ाकू विमान है, जिसे विशेष रूप से समुद्री युद्धक्षेत्र के लिए तैयार किया गया है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ हैं:
- एडवांस्ड एवियोनिक्स और रडार सिस्टम
- फ्लेक्सिबल टेकऑफ और लैंडिंग क्षमता — एयरक्राफ्ट कैरियर से उड़ान और लैंडिंग के लिए अनुकूल
- मल्टी-रोल क्षमताएं – हवा से हवा, हवा से ज़मीन, और समुद्री लक्ष्यों पर सटीक हमला
- समुद्री आक्रामक अभियानों में सक्षम हथियार प्रणाली
- कठिन जलवायु परिस्थितियों में ऑपरेशन क्षमता
इन विमानों के भारतीय नौसेना में शामिल होने से INS विक्रांत और भविष्य के विमान वाहक पोतों की क्षमताएं कई गुना बढ़ जाएंगी।
भारत और फ्रांस: रक्षा साझेदारी का नया अध्याय
भारत और फ्रांस के बीच रणनीतिक और रक्षा साझेदारी कोई नई बात नहीं है। पहले ही भारतीय वायुसेना 36 राफेल लड़ाकू विमानों का संचालन कर रही है, जो 2022 तक पूरी तरह से आपूर्ति हो चुके हैं। अब इसी श्रृंखला में नौसेना के लिए राफेल-एम विमान जुड़ने जा रहे हैं।
नई दिल्ली में हुए इस ऐतिहासिक समझौते पर दोनों देशों के रक्षा अधिकारियों ने हस्ताक्षर किए। इस समझौते के तहत:
- 22 सिंगल-सीटर राफेल-एम और
- 4 ट्रेनर संस्करण डबल-सीटर राफेल-एम
की आपूर्ति की जाएगी। यह आपूर्ति 2028 से शुरू होकर 2030 तक पूरी हो जाएगी।
हिंद महासागर में बढ़ेगी भारतीय शक्ति, चीन को मिलेगी सीधी चुनौती
हाल के वर्षों में हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में चीन की बढ़ती समुद्री उपस्थिति भारत के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। चीन द्वारा श्रीलंका, पाकिस्तान और म्यांमार में नौसैनिक अड्डों का विस्तार एक रणनीतिक घेरा बनाने की कोशिश है।
ऐसे में राफेल-एम जैसे घातक और आधुनिक लड़ाकू विमानों की भारतीय नौसेना में तैनाती भारत को समुद्री सुरक्षा और प्रभुत्व के मोर्चे पर नई ताकत देगी। इससे न सिर्फ समुद्री सीमा की सुरक्षा मज़बूत होगी, बल्कि आपदा प्रबंधन, समुद्री निगरानी और आतंकवाद-रोधी अभियानों में भी मदद मिलेगी।
राफेल डील में तकनीकी ट्रांसफर और मेक इन इंडिया का योगदान
भारत सरकार ने राफेल-एम सौदे में केवल विमान खरीद तक खुद को सीमित नहीं रखा है, बल्कि इसमें टेक्नोलॉजी ट्रांसफर (ToT) का भी प्रावधान शामिल है। इसका मतलब है कि फ्रांसीसी कंपनी डसॉल्ट एविएशन कुछ तकनीकों का स्थानांतरण भारतीय रक्षा उद्योगों को करेगी।
यह सौदा भारत के ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियानों को नई ऊर्जा देगा। DRDO, HAL और देश की निजी रक्षा कंपनियाँ इस तकनीक के माध्यम से भविष्य में स्वदेशी फाइटर जेट्स के निर्माण और मेंटेनेंस में अहम भूमिका निभा सकेंगी।
राफेल-एम डील की प्रमुख बातें (संक्षेप में):
रक्षा विश्लेषकों की राय
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि यह डील भारत की "टू फ्रंट वार" की तैयारी में एक निर्णायक कदम है। एक तरफ पाकिस्तान और दूसरी तरफ चीन के बीच फंसे भारत को समुद्र, जल और आकाश – तीनों क्षेत्रों में एक साथ सक्षम रहना जरूरी है। राफेल-एम जैसे युद्धक विमान इस रणनीति को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे।
वरिष्ठ सैन्य विश्लेषक ले. जनरल (से.नि.) डी.एस. हुड्डा कहते हैं –
"यह डील केवल विमान की खरीद नहीं है, बल्कि एक लंबी रणनीतिक सोच का हिस्सा है। यह भारत की समुद्री आत्मनिर्भरता की दिशा में बड़ा कदम है।"
उड़ान जो बदलेगी समुद्री संतुलन
राफेल-एम विमान सौदा केवल एक रक्षा खरीद नहीं है, बल्कि यह भारत की सामरिक सोच, वैश्विक कूटनीति और क्षेत्रीय प्रभुत्व को प्रदर्शित करता है। इस सौदे के माध्यम से भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह हिंद महासागर क्षेत्र में नेतृत्वकारी भूमिका निभाने के लिए तैयार है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि इस रणनीतिक बढ़त का भारत सैन्य अभ्यासों, समुद्री गश्त और क्षेत्रीय साझेदारियों में किस तरह उपयोग करता है।
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