53 वर्षों बाद पृथ्वी की ओर लौट रहा रूसी यान: कोस्मोस 482 इसी महीने टकरा सकता है धरती से | क्या होगा असर?
WORLD HEADLINES
दुनिया की अंतरिक्ष गतिविधियों में एक ऐतिहासिक घटना जल्द ही घटित होने जा रही है। 53 वर्षों से अंतरिक्ष में घूम रहा सोवियत काल का एक रूसी यान ‘कोस्मोस 482’ इस महीने पृथ्वी से टकरा सकता है। वैज्ञानिकों और अंतरिक्ष एजेंसियों के मुताबिक यह यान पूरी तरह अनियंत्रित हो चुका है और इसकी दिशा अब धरती की ओर है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि इसके कारण पृथ्वी को व्यापक नुकसान होने की संभावना कम है, लेकिन यह घटना तकनीकी और ऐतिहासिक दोनों दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
कोस्मोस 482: एक अधूरी अंतरिक्ष यात्रा की कहानी
सन 1972 में सोवियत संघ ने शुक्र ग्रह (Venus) पर जीवन की संभावनाओं और ग्रह की संरचना का अध्ययन करने के लिए ‘कोस्मोस 482’ नामक एक यान अंतरिक्ष में भेजा था। इसका उद्देश्य था शुक्र की सतह पर लैंडर उतारना और वहां से वैज्ञानिक आंकड़े पृथ्वी पर भेजना। यह मिशन सोवियत ‘वेनेरा प्रोग्राम’ का हिस्सा था, जिसके तहत USSR ने 1961 से 1983 के बीच कई मिशन शुक्र की ओर भेजे।
लेकिन तकनीकी खामी के कारण यान पृथ्वी की कक्षा से पूरी तरह बाहर नहीं निकल पाया और पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण सीमा में ही घूमता रह गया। पिछले 53 वर्षों से यह यान अनियंत्रित रूप से पृथ्वी की कक्षा में चक्कर काट रहा है।
अब क्यों बढ़ी है चिंता?
हाल ही में किए गए ट्रैकिंग विश्लेषणों के अनुसार, कोस्मोस 482 की कक्षा अब अत्यधिक क्षय की स्थिति में है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि मई 2025 के पहले पखवाड़े में यह यान पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर सकता है और इसके मलबे का एक बड़ा हिस्सा धरती पर गिर सकता है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह यान लगभग 500 किलोग्राम वजनी है और यदि यह घनी आबादी वाले इलाके में गिरता है, तो सीमित स्तर का नुकसान हो सकता है। हालांकि अब तक की गणनाओं और अनुभवों से यह माना जा रहा है कि पृथ्वी के वायुमंडल में घर्षण के कारण यान का अधिकांश हिस्सा जलकर नष्ट हो जाएगा और उसका मलबा समुद्र या निर्जन स्थानों पर गिरेगा।
कहां और कब गिर सकता है?
कोस्मोस 482 की सही लोकेशन और गिरने का स्थान अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार यह पृथ्वी के उस हिस्से में गिर सकता है जो भूमध्यरेखा से 42° उत्तर या दक्षिण अक्षांश के भीतर हो। इसका अर्थ है कि अमेरिका, भारत, चीन, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका जैसे कई देश संभावित दायरे में आते हैं।
हालांकि अधिकांश विशेषज्ञ मानते हैं कि यह मलबा समुद्र में गिरेगा, क्योंकि पृथ्वी की सतह का लगभग 71% भाग जल से ढका है।
क्या यह पहली बार है जब ऐसा हो रहा है?
नहीं, इससे पहले भी कई अनियंत्रित अंतरिक्ष यान पृथ्वी पर गिरे हैं। चीन के तियांगोंग-1 स्पेस स्टेशन, अमेरिका के स्काईलैब, और रूस के मीर स्टेशन जैसे उदाहरण अतीत में देखे जा चुके हैं। इन सभी घटनाओं में अधिकांश मलबा पृथ्वी के वायुमंडल में जलकर नष्ट हो गया था।
विशेषज्ञों का मानना है कि कोस्मोस 482 का बाहरी आवरण बेहद मजबूत है क्योंकि इसे सोवियत संघ के मजबूत टाइटेनियम-आधारित मिश्र धातुओं से तैयार किया गया था। यही कारण है कि यह अब तक अंतरिक्ष में बना रहा है और इसका कुछ हिस्सा पृथ्वी तक पहुंच सकता है।
क्या होगा टकराव का असर?
NASA और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) का मानना है कि यह अंतरिक्ष यान वायुमंडल में प्रवेश करते समय काफी हद तक जलकर नष्ट हो जाएगा। हालांकि, अगर इसके कुछ हिस्से ज़मीन तक पहुंचते भी हैं, तो उनके आकार छोटे और नुकसान की संभावना बेहद कम मानी जा रही है। इसके बावजूद, वैश्विक स्तर पर अंतरिक्ष निगरानी एजेंसियां इसकी स्थिति पर सतत नजर बनाए हुए हैं।
भारत की ISRO (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) और अमेरिका की NORAD जैसी संस्थाएं कोस्मोस 482 की गतिविधियों पर पैनी नजर रख रही हैं। जैसे ही यह वायुमंडल में प्रवेश करेगा, इसकी गति, दिशा और संभावित गिरने के स्थान का पूर्वानुमान और अधिक सटीकता से लगाया जा सकेगा।
अंतरिक्ष कबाड़ (Space Debris) की बढ़ती समस्या
यह घटना अंतरिक्ष में बढ़ते ‘स्पेस डेब्रिस’ की गंभीर समस्या की ओर भी इशारा करती है। हजारों की संख्या में अनियंत्रित उपग्रह, रॉकेट बूस्टर और यान अंतरिक्ष में घूम रहे हैं, जो न केवल अंतरिक्ष मिशनों के लिए खतरा हैं, बल्कि पृथ्वी पर लौटकर संभावित हादसे का कारण भी बन सकते हैं।
संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक एजेंसियां इस मुद्दे पर लंबे समय से चर्चा कर रही हैं, लेकिन अब इस दिशा में ठोस अंतरराष्ट्रीय नियमों और तकनीकी समाधानों की आवश्यकता है।
क्या कर रही हैं अंतरिक्ष एजेंसियां?
आज की उन्नत तकनीक के बावजूद किसी पुराने और अनियंत्रित यान को रोकना या पृथ्वी से टकराने से बचाना संभव नहीं है, खासकर जब वह वर्षों से सक्रिय न हो। हालांकि अब विकसित देशों की अंतरिक्ष एजेंसियां ‘डे-ऑर्बिटिंग सिस्टम्स’ पर काम कर रही हैं जो किसी मिशन के अंत में उपग्रहों या यानों को नियंत्रित ढंग से नष्ट करने या जलाने में सक्षम हों।
भारत की गगनयान परियोजना और ISRO की भविष्य की योजनाओं में भी ऐसे सिस्टम्स को शामिल किया जा रहा है ताकि भारत अंतरिक्ष कचरे की समस्या से निपटने में अग्रणी भूमिका निभा सके।
कोस्मोस 482 एक वैज्ञानिक विफलता थी, लेकिन अब यह भविष्य के लिए एक चेतावनी बन गई है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि अंतरिक्ष में छोड़े गए उपकरणों की निगरानी और जिम्मेदारी बेहद जरूरी है। तकनीकी विकास के इस युग में हमें ऐसे समाधानों की ओर बढ़ना होगा जो भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोक सकें।
भविष्य में हम चाहे जितनी भी प्रगति कर लें, अंतरिक्ष की शांति और सुरक्षा को सुनिश्चित करना हम सभी की साझा जिम्मेदारी है।
WORLD HEADLINES इस पूरे घटनाक्रम पर अपनी पैनी नजर बनाए हुए है। जैसे-जैसे नए अपडेट सामने आएंगे, हम आपको तुरंत जानकारी प्रदान करेंगे।

