भारत-चीन संबंधों में गर्मजोशी के संकेत: कूटनीति, व्यापार और रणनीतिक संवाद में नया मोड़
भूमिका :-
भारत और चीन, जो दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ और आबादी वाले देश हैं, हाल ही में अपने संबंधों को पुनर्जीवित करने की दिशा में आगे बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों से लद्दाख सीमा विवाद, व्यापारिक असंतुलन और कूटनीतिक तनावों के चलते दोनों देशों के रिश्तों में ठंडापन था, लेकिन हालिया घटनाक्रम दर्शाते हैं कि दोनों पक्ष आपसी सहयोग को बढ़ाने और संबंधों में सुधार लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं।
व्यापारिक सहयोग और आर्थिक संवाद :-
बीजिंग में भारतीय दूतावास द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि चीन ने भारत से अधिक उत्पादों के आयात की इच्छा व्यक्त की है। चीन के राजदूत ने यह संकेत दिया कि दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे को कम करने के लिए भारत से अधिक कृषि और तकनीकी उत्पादों का आयात किया जा सकता है। यह बयान ऐसे समय में आया है जब अमेरिका और चीन के बीच व्यापारिक तनाव बढ़ रहा है और बीजिंग नए बाजारों की तलाश में है।
राजनयिक संवाद और उच्च-स्तरीय बैठकें:-
जनवरी 2025 में, भारतीय और चीनी राजनयिकों ने बीजिंग में वार्ता की, जिसमें दोनों पक्षों ने कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करने और पारस्परिक हितों के मुद्दों पर चर्चा की। विशेष रूप से, इस बैठक में कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने पर सहमति बनी, जो 2020 से महामारी और सीमा विवाद के कारण स्थगित थी। इसके अतिरिक्त, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक-दूसरे को संदेश भेजे, जिसमें उन्होंने परस्पर सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया।
सीमा विवाद और सैन्य वार्ता में प्रगति :-
भारत और चीन के बीच सीमा विवाद एक प्रमुख मुद्दा रहा है, खासकर पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में। अक्टूबर 2024 में, दोनों देशों ने सैन्य स्तर की वार्ता के बाद एक महत्वपूर्ण समझौता किया, जिसके तहत सैनिकों की संख्या को कम करने और तनाव कम करने के लिए कदम उठाए गए। इसके बाद रूस में आयोजित ब्रिक्स सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक हुई, जिसमें दोनों नेताओं ने सीमा पर शांति बनाए रखने और विश्वास बहाली के उपायों पर चर्चा की। यह बैठक पिछले पांच वर्षों में दोनों नेताओं की पहली औपचारिक बातचीत थी।
भविष्य की संभावनाएँ और चुनौतियाँ:-
हालाँकि दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन कुछ प्रमुख चुनौतियाँ बनी हुई हैं। भारत का व्यापार घाटा अभी भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, और कई भारतीय उद्योग चीन से अधिक संतुलित व्यापारिक संबंधों की माँग कर रहे हैं। साथ ही, सीमा पर विश्वास बहाली की प्रक्रिया अभी भी जारी है, और इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए दीर्घकालिक रणनीति की आवश्यकता होगी।
भारत और चीन के बीच हालिया कूटनीतिक और व्यापारिक संवाद संबंधों में एक नए अध्याय की शुरुआत का संकेत देते हैं। यदि दोनों देश आर्थिक सहयोग, कूटनीतिक वार्ता और आपसी विश्वास को मजबूत करने के लिए ठोस कदम उठाते हैं, तो यह न केवल द्विपक्षीय संबंधों को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा, बल्कि पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थिरता और विकास को भी बढ़ावा देगा।
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