हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर भारत की दो टूक: बांग्लादेश को निभानी होगी ज़िम्मेदारी – पीएम मोदी
स्थान: बैंकाक |रिपोर्ट: WORLD HEADLINES | दिनांक: 4 अप्रैल 2025
अंतरराष्ट्रीय संबंध / दक्षिण एशिया / विश्लेषण
एक कूटनीतिक चेतावनी
बैंकाक में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस से मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि बांग्लादेश को वहां के हिंदू अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। यह वक्तव्य न केवल एक राजनयिक संकेत है, बल्कि भारत की बदलती विदेश नीति (Foreign Policy) और दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन की नई दिशा भी दर्शाता है।
भारत-बांग्लादेश संबंध: सहयोग से चेतावनी तक
इतिहास की पृष्ठभूमि
1971 में भारत ने बांग्लादेश की स्वतंत्रता में निर्णायक भूमिका निभाई थी। इसके बाद दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध बने रहे, लेकिन समय-समय पर जल बंटवारा (तीस्ता समझौता), अवैध प्रवास, सीमा विवाद और अल्पसंख्यकों पर हिंसा जैसे मुद्दों ने तनाव भी उत्पन्न किया।
हिंदुओं की स्थिति
बांग्लादेश में हिंदुओं की जनसंख्या 1947 में करीब 30% थी, जो अब घटकर 8% से भी कम रह गई है। विभिन्न रिपोर्टों में सामने आया है कि धार्मिक हिंसा, ज़बरन धर्मांतरण और संपत्ति हड़पने की घटनाएं आम हो गई हैं। ऐसे में भारत की चिंता स्वाभाविक है।
प्रधानमंत्री मोदी का सख्त रुख: एक नया संदेश
मोदी सरकार अब यह मान रही है कि धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सिर्फ आंतरिक मामला नहीं, बल्कि मानवाधिकारों का अंतरराष्ट्रीय मुद्दा है। उनका यह बयान भारत की ‘नेबरहुड फर्स्ट’ नीति को ‘नेबरहुड विद रिस्पॉन्सिबिलिटी’ में बदलने की ओर इशारा करता है।
“बांग्लादेश को अपने हिंदू नागरिकों की रक्षा की ज़िम्मेदारी निभानी होगी,” — पीएम नरेंद्र मोदी, बैंकाक, 4 अप्रैल 2025
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार: अस्थिरता में फंसी जवाबदेही
मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की अंतरिम सरकार वर्तमान में चुनावों की तैयारी कर रही है। ऐसे में भारत का दबाव उनके लिए कूटनीतिक संकट बन सकता है। भारत की यह चेतावनी वहां की आंतरिक राजनीति और धार्मिक ध्रुवीकरण को और बढ़ा सकती है।
IR के नजरिए से विश्लेषण
यथार्थवाद (Realism):
भारत इस मुद्दे को राष्ट्रीय सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान से जोड़ रहा है। यह IR का यथार्थवादी दृष्टिकोण है — "राज्य अपने नागरिकों और उससे जुड़े हितों की रक्षा के लिए कड़े कदम उठाता है।"
उदारवाद (Liberalism):
भारत और बांग्लादेश के बीच व्यापार, कनेक्टिविटी, और ऊर्जा सहयोग जैसे उदारवादी संबंध भी विकसित हुए हैं। ऐसे में यह तनाव इन सहयोगों पर भी प्रभाव डाल सकता है।
घरेलू राजनीति और मोदी सरकार की रणनीति
मोदी सरकार ने पहले भी अफगान, पाकिस्तानी और श्रीलंकाई अल्पसंख्यकों के मुद्दे पर सख्त रुख अपनाया है। अब बांग्लादेश के हिंदुओं के मामले में सख्ती यह संकेत देती है कि भारत वैश्विक स्तर पर 'हिंदू हित संरक्षक' की भूमिका निभाने को तैयार है।
यह घरेलू हिंदू वोटबैंक को भी साधता है और वैश्विक मंचों पर भारत की नैतिक साख को भी बढ़ाता है।
भारत की ‘मोरल डिप्लोमेसी’: सॉफ्ट पावर से हार्ड पोजिशन तक
भारत लंबे समय से ‘सॉफ्ट पावर’ जैसे योग, संस्कृति और शांति के माध्यम से अपनी विदेश नीति चला रहा था। लेकिन अब यह नीति एक ‘मोरल डिप्लोमेसी’ की ओर बढ़ रही है, जिसमें धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकार केंद्रीय भूमिका निभा रहे हैं।
भविष्य की संभावनाएं और जोखिम
1. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत का रुख सख्त हो सकता है:
UN, UNHRC, या SAARC जैसे मंचों पर भारत यह मुद्दा उठा सकता है।
2. बांग्लादेश में चीन का प्रभाव बढ़ सकता है:
अगर भारत का रुख ज्यादा सख्त हुआ, तो बांग्लादेश चीन के करीब जा सकता है, जो भारत की रणनीतिक स्थिति को कमजोर कर सकता है।
3. द्विपक्षीय व्यापार पर असर:
भारत-बांग्लादेश व्यापार सालाना 18 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है। राजनीतिक तनाव इसे प्रभावित कर सकता है।
यह सिर्फ एक टिप्पणी नहीं, एक चेतावनी है
प्रधानमंत्री मोदी का बयान भारत की रणनीतिक सोच और धार्मिक-सांस्कृतिक जिम्मेदारियों के बीच एक नई धारा को दर्शाता है। अब भारत केवल 'शांतिपूर्ण पड़ोसी' नहीं, बल्कि 'जवाबदेही मांगने वाला क्षेत्रीय नेता' बनना चाहता है।

