चीन-रूस की चंद्र योजना: चंद्रमा पर परमाणु संयंत्र और अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान स्टेशन की तैयारी
अंतरिक्ष में वैश्विक शक्ति का नया समीकरण
चीन और रूस आज केवल पृथ्वी पर ही नहीं, बल्कि अंतरिक्ष में भी एक नई साझेदारी का रूप गढ़ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय चंद्र अनुसंधान स्टेशन (International Lunar Research Station - ILRS) की योजना को साकार करने के लिए अब दोनों देश एक क्रांतिकारी कदम की ओर बढ़ रहे हैं—चंद्रमा की सतह पर परमाणु ऊर्जा संयंत्र की स्थापना। यह योजना न केवल विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दृष्टि से ऐतिहासिक है, बल्कि अंतरिक्ष में ऊर्जा सुरक्षा और स्थायित्व की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर भी हो सकती है।
ILRS: चंद्र अन्वेषण का नया केंद्र
ILRS को लेकर चीन और रूस का साझा दृष्टिकोण यह है कि चंद्रमा पर एक ऐसा अनुसंधान केंद्र बनाया जाए, जो अंतरिक्ष यात्रियों, वैज्ञानिकों और रोबोटिक तकनीकों की मदद से स्थायी वैज्ञानिक अनुसंधान कर सके। इस योजना के तहत 2035 तक एक पूर्ण रूप से क्रियाशील अनुसंधान स्टेशन तैयार करना है।
चीन की चांग-ई (Chang’e) श्रृंखला के मिशनों ने पहले ही चंद्रमा की सतह पर डेटा संग्रह और नमूना वापसी जैसी उपलब्धियां हासिल की हैं। अब चांग-ई-8 मिशन, जो 2028 के लिए निर्धारित है, इस दिशा में एक बड़ा कदम होगा। मिशन का उद्देश्य होगा चंद्रमा पर स्थायी मानवयुक्त बेस के निर्माण की नींव रखना।
परमाणु संयंत्र: चंद्र ऊर्जा का भविष्य
चंद्रमा पर लगातार ऊर्जा आपूर्ति के लिए केवल सौर ऊर्जा पर्याप्त नहीं मानी जा रही। इसीलिए चीन और रूस ने परमाणु ऊर्जा संयंत्र की स्थापना पर चर्चा शुरू की है। चंद्रमा पर रातें पृथ्वी की तुलना में काफी लंबी होती हैं—लगभग 14 पृथ्वी दिन की रातें होती हैं—जिसके चलते सौर ऊर्जा की निरंतरता में बाधा आती है।
परमाणु संयंत्र, इस स्थिति में, ऐसी ऊर्जा प्रदान कर सकता है जो लगातार, स्थिर और दीर्घकालिक हो। चीन के वरिष्ठ वैज्ञानिक वू वेइरेन ने साफ तौर पर कहा है कि ILRS के लिए सबसे बड़ी चुनौती ऊर्जा की है और इसमें रूस को परमाणु तकनीक का स्वाभाविक लाभ है।
तकनीकी दृष्टिकोण: ऊर्जा आपूर्ति का पूरा खाका
शंघाई में दिए गए एक तकनीकी प्रस्तुति में चांग-ई-8 मिशन के चीफ इंजीनियर पेई झाओयू ने बताया कि चंद्र बेस की ऊर्जा आपूर्ति प्रणाली में:
- सौर ऊर्जा प्रणाली
- तापीय ऊर्जा नियंत्रण
- पाइपलाइन और केबल वितरण नेटवर्क
शामिल होंगे। लेकिन जब बात स्थायी ऊर्जा की होती है, तो परमाणु रिएक्टर की भूमिका निर्णायक बन जाती है।
चीन की अंतरिक्ष यात्रा: तेज़ रफ्तार में विस्तार
चीन ने हाल के वर्षों में अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम को असाधारण गति दी है। शेनझोउ-20 मिशन के तहत 3 नए अंतरिक्ष यात्रियों को चीन के अंतरिक्ष स्टेशन पर भेजा जा रहा है, जहां वे पिछले 6 महीनों से तैनात चालक दल की जगह लेंगे।
इन तीनों यात्रियों में चेन डोंग को मिशन कमांडर बनाया गया है, जिनके साथ चेन झोंगरुई और वांग जी भी शामिल हैं। यह मिशन चीन के 10वें राष्ट्रीय अंतरिक्ष दिवस के अवसर पर लॉन्च किया जा रहा है, जो देश की स्पेस-रक्षा रणनीति और विज्ञान तकनीकी विकास का प्रतीक बन चुका है।
पाकिस्तानी अंतरिक्ष यात्रियों को भी मिलेगा मौका
इस पूरी परियोजना में द्विपक्षीय सहयोग की भावना को और मजबूत करते हुए, चीन ने घोषणा की है कि दो पाकिस्तानी अंतरिक्ष यात्रियों को चीन में स्पेस फ्लाइट ट्रेनिंग के लिए चुना गया है। इनमें से एक यात्री को payload specialist के रूप में एक संयुक्त मिशन में भाग लेने का मौका मिलेगा।
यह कदम न केवल अंतरिक्ष में भारत-पाकिस्तान के बीच की दूरी को दिखाता है, बल्कि चीन की कूटनीतिक रणनीति का भी हिस्सा प्रतीत होता है।
भविष्य की कल्पना: चंद्रमा पर मानव जीवन का आधार
ILRS और चंद्रमा पर परमाणु संयंत्र की योजना एक व्यापक भविष्य की कल्पना को जन्म देती है:
- क्या भविष्य में चंद्र कॉलोनी बन सकती है?
- क्या वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए चंद्रमा पर प्रयोगशालाएं स्थापित होंगी?
- क्या वहां संसाधनों का निष्कर्षण कर पृथ्वी पर ऊर्जा संकट का समाधान निकाला जाएगा?
इन सभी सवालों के जवाब आने वाले वर्षों में स्पष्ट होंगे, लेकिन इतना तय है कि चीन और रूस की साझेदारी वैश्विक अंतरिक्ष राजनीति का चेहरा बदल सकती है।
अंतरिक्ष में शक्ति संतुलन की नई दिशा
2030 तक एक प्रमुख अंतरिक्ष शक्ति बनने का चीन का सपना, अब विज्ञान और रणनीति के सहयोग से साकार होता प्रतीत हो रहा है। चंद्रमा पर ILRS और परमाणु संयंत्र की योजना न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से क्रांतिकारी है, बल्कि यह एक भविष्य की भू-राजनीति का संकेत भी देती है। इसमें रूस की तकनीकी शक्ति और चीन की संसाधन क्षमता मिलकर एक नई दिशा तैयार कर रही हैं।
यह सहयोग न केवल चंद्रमा के भविष्य को बदलने वाला है, बल्कि पृथ्वी पर भी नई अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा और सहयोग का आधार बनेगा।
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