IMO का ऐतिहासिक कदम: वैश्विक पोत परिवहन को Net-Zero की ओर ले जाने वाला पहला अंतरराष्ट्रीय फ्रेमवर्क मंजूर

IMO का ऐतिहासिक निर्णय: वैश्विक पोत परिवहन के लिए पहला Net-Zero Framework मंजूर

IMO का ऐतिहासिक निर्णय: वैश्विक पोत परिवहन के लिए पहला Net-Zero Framework मंजूर


विश्व समुद्री क्षेत्र में हरित क्रांति की ओर एक बड़ा कदम

गुरुग्राम/लंदन, अप्रैल 2025 — विश्व समुद्री परिवहन के इतिहास में एक बड़ा मोड़ आया है। अंतरराष्ट्रीय समुद्री संगठन (International Maritime Organization - IMO) ने वैश्विक पोत परिवहन को हरित और टिकाऊ बनाने के उद्देश्य से दुनिया का पहला Net-Zero Framework मंजूर कर लिया है। इस क्रांतिकारी नीति के जरिए IMO ने एक स्पष्ट संकेत दिया है कि अब समुद्री उद्योग को भी जलवायु परिवर्तन के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभानी होगी।


क्या है IMO का Net-Zero Framework?

यह नया फ्रेमवर्क समुद्री परिवहन उद्योग में ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को शून्य करने की रणनीति पर आधारित है। यह 2027 से अनिवार्य रूप से लागू होगा और 2050 तक वैश्विक पोत परिवहन से उत्सर्जन को Net-Zero (शून्य उत्सर्जन) तक लाने का लक्ष्य निर्धारित करता है।

इसमें दो मुख्य घटक शामिल हैं:

  1. Global Fuel Standard (GFS): जहाजों को समय के साथ अपने ईंधन के कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को घटाना होगा।
  2. Global Economic Measure: उच्च उत्सर्जन वाले जहाजों को 'Remedial Units' खरीदनी होंगी, जबकि शून्य उत्सर्जन वाले जहाजों को वित्तीय प्रोत्साहन मिलेगा।

क्यों जरूरी था यह कदम?

वर्तमान में पोत परिवहन वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 3% का योगदान देता है। यह आंकड़ा छोटा लग सकता है, लेकिन यदि समुद्री उद्योग स्वतंत्र देश होता, तो यह उत्सर्जन के लिहाज़ से दुनिया के शीर्ष 10 प्रदूषक देशों में शामिल होता।

इसके बावजूद, अब तक यह क्षेत्र किसी ठोस अंतरराष्ट्रीय जलवायु नीति के दायरे में नहीं आता था। यह फ्रेमवर्क न केवल इस खामी को दूर करता है, बल्कि यह दिखाता है कि हर क्षेत्र को अब जलवायु लक्ष्यों में सहभागी बनना होगा


फ्रेमवर्क की मुख्य विशेषताएं

  • MARPOL Annex VI के तहत शामिल: Net-Zero Framework को IMO के मौजूदा जलवायु नियंत्रण समझौते MARPOL के Annex VI में जोड़ा जाएगा, जो जहाजों से होने वाले वायु प्रदूषण की रोकथाम से संबंधित है।

  • वैश्विक लागूता: 5000 सकल टन (Gross Tonnage) से अधिक सभी अंतरराष्ट्रीय समुद्री जहाजों को यह नीति माननी होगी, जो वैश्विक CO2 उत्सर्जन का लगभग 85% हिस्सा हैं।

  • IMO Net-Zero Fund: एक नया कोष (फंड) स्थापित किया जाएगा जिसमें Remedial Units की बिक्री से प्राप्त धनराशि जमा की जाएगी। इसका उपयोग शून्य उत्सर्जन तकनीकों के अनुसंधान, विकास और सब्सिडी के लिए किया जाएगा।


कार्यान्वयन की समय-सीमा

कार्यान्वयन की समय-सीमा


भारत और IMO: एक सशक्त भागीदारी

भारत IMO का एक सक्रिय सदस्य है और समुद्री परिवहन में इसकी भूमिका लगातार बढ़ रही है। भारत की तटरेखा 7,500 किमी से अधिक है और देश के 12 प्रमुख बंदरगाहों समेत सैकड़ों छोटे-बड़े पोर्ट दुनिया से व्यापार का केंद्र हैं।

Net-Zero Framework भारत के लिए एक अवसर भी है और एक चुनौती भी। यह फ्रेमवर्क भारत को अपनी समुद्री नीति को और अधिक हरित और आधुनिक बनाने के लिए प्रेरित करेगा। साथ ही भारत जैसे विकासशील देशों को IMO फंड से आर्थिक और तकनीकी मदद मिलने की संभावना भी बढ़ेगी।


MARPOL: समुद्री प्रदूषण पर लगाम

IMO की यह पहल MARPOL (International Convention for the Prevention of Pollution from Ships) की निरंतरता में ही है। MARPOL को 1973 में शुरू किया गया था और इसमें अब तक छह Annex शामिल हो चुके हैं, जो तेल, रसायन, कचरा, हवा, शोर और जल प्रदूषण जैसे मुद्दों को संबोधित करते हैं।

Net-Zero Framework को MARPOL Annex VI का हिस्सा बनाकर IMO ने यह स्पष्ट कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन अब केवल एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि एक वैश्विक नीति प्राथमिकता बन चुका है।


इस फैसले के वैश्विक प्रभाव

  1. कार्बन बाज़ार को बढ़ावा: फ्रेमवर्क के तहत GHG मूल्य निर्धारण और Remedial Units जैसे उपायों से एक नया कार्बन क्रेडिट बाज़ार विकसित होगा।
  2. हरित तकनीक में निवेश: जहाज कंपनियों को शून्य उत्सर्जन तकनीकों जैसे Hydrogen, Ammonia और Battery-Powered Ships की ओर रुख करना होगा।
  3. नवाचार को बढ़ावा: स्टार्टअप्स और टेक कंपनियों के लिए यह एक नई इंडस्ट्री का द्वार खोलता है – “ग्रीन मरीन टेक्नोलॉजी”।
  4. नियमों का सख्त पालन: नीति उल्लंघन पर भारी दंड का प्रावधान, जिससे समुद्री कंपनियां हर हाल में नियमों का पालन करेंगी।

WORLD HEADLINES की राय

यह पहल सिर्फ समुद्री परिवहन क्षेत्र के लिए नहीं, बल्कि पूरे वैश्विक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक मील का पत्थर है। IMO का यह निर्णय दर्शाता है कि जलवायु परिवर्तन की चुनौती को तभी पार किया जा सकता है, जब हर क्षेत्र – चाहे वह ऊर्जा हो, कृषि हो या परिवहन – सक्रिय रूप से जवाबदेह बने

भारत को चाहिए कि वह इस अवसर को रणनीतिक रूप से अपनाए, हरित बंदरगाहों, पर्यावरण-अनुकूल जहाज निर्माण और शोध में निवेश करे, जिससे न केवल उसका समुद्री क्षेत्र सशक्त हो, बल्कि वह वैश्विक मंच पर जलवायु नेतृत्व की भूमिका भी निभा सके।



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