Tectonic Shift: भारतीय प्लेट का Horizontal Delamination वैज्ञानिकों की नजर में

Indian Plate Breaking Apart: भारतीय महाद्वीपीय प्लेट में हो रहा है अंदरूनी विभाजन

Indian Plate Breaking Apart: भारतीय महाद्वीपीय प्लेट में हो रहा है अंदरूनी विभाजन

प्रकाशित: WORLD HEADLINES 
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नवीनतम समाचार: वैज्ञानिकों ने दी चेतावनी — भारतीय प्लेट में हो रही है भीतरी टूट-फूट

अप्रैल 2025: भारत और चीन के भूवैज्ञानिकों द्वारा किए गए ताजा शोध में दावा किया गया है कि भारतीय महाद्वीपीय प्लेट अब अंदर से क्षैतिज रूप से विभाजित हो रही है, जिसे ‘डेलैमिनेशन’ (Delamination) कहा जाता है। यह टूट-फूट प्लेट के घने निचले भाग के मेंटल में धंसने के कारण हो रही है, जिससे इस क्षेत्र में भविष्य में भूकंपों की आशंका बहुत अधिक बढ़ गई है।

Nature Geoscience, Indian Institute of Geosciences, और चाइना अर्थ ऑब्जर्वेटरी सेंटर द्वारा प्रकाशित रिपोर्टों के अनुसार, यह प्रक्रिया भारत के भूगर्भीय स्वरूप को गहराई से बदल सकती है। भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों, नेपाल, और तिब्बती पठार के इलाकों को लेकर विशेष सावधानी बरतने की सलाह दी गई है।


1. भारतीय प्लेट: टेक्टोनिक गतिविधियों का केंद्र

भारतीय महाद्वीपीय प्लेट एक प्रमुख टेक्टोनिक प्लेट है, जो चार अन्य बड़ी प्लेटों — यूरेशियन, अरेबियन, अफ्रीकी और ऑस्ट्रेलियाई — से घिरी हुई है। यह प्लेट लगभग 60 मिलियन वर्ष पहले उत्तर की दिशा में बढ़ी थी और वर्तमान यूरेशियन प्लेट से टकराई, जिसके परिणामस्वरूप हिमालय पर्वत श्रृंखला और तिब्बती पठार का निर्माण हुआ।

भारतीय प्लेट की गति:

  • औसतन 5 से 6 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की गति से यह प्लेट अब भी उत्तर दिशा की ओर अग्रसर है।
  • यह गति आज भी जारी है और इसी कारण हिमालय में हर साल हल्के-फुल्के भूकंप आते रहते हैं।

2. भारतीय प्लेट में "डेलैमिनेशन" क्या है?

डेलैमिनेशन एक भूगर्भीय प्रक्रिया है जिसमें किसी प्लेट का घना निचला भाग पृथ्वी की अंदरूनी परत — मेंटल — में धंस जाता है। इससे प्लेट के भीतर तनाव उत्पन्न होता है और वह धीरे-धीरे दो हिस्सों में विभाजित होने लगती है।

यह प्रक्रिया क्यों महत्वपूर्ण है?

  • डेलैमिनेशन से भूगर्भीय अस्थिरता पैदा होती है।
  • इससे भूकंपीय गतिविधियों में तेज़ी आ सकती है।
  • उत्तर भारत, नेपाल और तिब्बत में बड़े भूकंपों का खतरा मंडरा सकता है।

3. हिमालय और तिब्बती पठार पर प्रभाव

यह प्रक्रिया विशेष रूप से हिमालय और तिब्बती क्षेत्र में सक्रिय है। शोध के अनुसार:

  • प्लेट के निचले हिस्से का मेंटल में जाना तिब्बती पठार को ऊपर की ओर उठाता है।
  • इससे सतह पर दरारें और झुकाव उत्पन्न होते हैं जो भूस्खलन, दरारों और जलवायु असंतुलन को जन्म दे सकते हैं।

4. भूकंप की आशंकाएं और ज़मीनी खतरे

वैज्ञानिकों का मानना है कि डेलैमिनेशन प्रक्रिया भविष्य में विनाशकारी भूकंप ला सकती है, जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 8.0 या उससे अधिक हो सकती है।

संभावित खतरे:

  • नेपाल और सिक्किम क्षेत्र में भारी कंपन की संभावना।
  • उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में जमीन धंसने की घटनाएं।
  • तिब्बती पठार में दरारों का तेजी से फैलाव।

5. अब तक के प्रमुख सिद्धांत

भारतीय और यूरेशियन प्लेट के टकराव से संबंधित दो प्रमुख सिद्धांत रहे हैं:

1. अंडरप्लेटिंग (Underplating):

भारतीय प्लेट का घना हिस्सा यूरेशियन प्लेट के नीचे जाकर उसमें दब जाता है।

2. सबडक्शन (Subduction):

जब एक भारी प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे घुसती है, तब जो नीचे जाती है, वह सबडक्शन कहलाती है।

अब तीसरा सिद्धांत सामने आया है:

3. डेलैमिनेशन (Delamination):

इसमें भारतीय प्लेट का निचला भाग क्षैतिज रूप से अलग होकर पृथ्वी की अंदरूनी सतह में गहराई तक चला जाता है।


6. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और तकनीकी विश्लेषण

अंतरिक्ष उपग्रहों (जैसे NASA's GRACE और ISRO के INSAT) से प्राप्त डेटा ने इस प्रक्रिया की पुष्टि की है। पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण में असमानता, प्लेट की मोटाई में भिन्नता, और सतह पर असामान्य तनाव — ये सभी इस विभाजन के प्रमाण हैं।


7.क्या भारत दो हिस्सों में बंट सकता है?

वैज्ञानिकों का मानना है कि निकट भविष्य में ऐसा विभाजन सतह पर नहीं दिखाई देगा, लेकिन अंदरूनी दरारें और अस्थिरता आने वाले दशकों में भारत के भूगोल और पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती हैं।


8. समाधान और सरकार की जिम्मेदारी

क्या किया जा सकता है?

  • भूकंपरोधी निर्माण तकनीकों को अनिवार्य करना।
  • हिमालयी राज्यों में संवेदनशील ज़ोन की पहचान।
  • बड़े बांधों और सुरंगों पर नई भूगर्भीय रिपोर्ट लागू करना।
  • राष्ट्रीय भूकंप चेतावनी प्रणाली को सुदृढ़ करना।

9. एक वैज्ञानिक चेतावनी, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता

यह नई खोज भारत के लिए एक भविष्यवाणी जैसी चेतावनी है। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में भारत को प्राकृतिक आपदाओं, मानवीय क्षति और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।

सरकार, वैज्ञानिक समुदाय और आम नागरिकों — तीनों को मिलकर भविष्य की रक्षा करनी होगी।



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