Visa Dispute: अमेरिका में भारतीय छात्रों के वीज़ा रद्द होने पर भारत ने जताई गहरी चिंता, अमेरिका ने भेदभाव से किया इनकार
WORLD HEADLINES | दिनांक: 20 अप्रैल 2025
भूमिका: शिक्षा के नाम पर चिंता का बादल
विश्वभर के छात्रों के लिए अमेरिका उच्च शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र माना जाता है। भारतीय छात्र वहां की शीर्ष यूनिवर्सिटियों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, गणित, और बिजनेस जैसे क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाते हैं। लेकिन हाल ही में भारतीय छात्रों को अमेरिका में वीज़ा रद्द किए जाने की बढ़ती घटनाओं ने भारत सरकार को सतर्क कर दिया है। यह मुद्दा अब सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक कूटनीतिक बहस का रूप ले चुका है।
विवाद की शुरुआत: AILA की चौंकाने वाली रिपोर्ट
अमेरिकन इमिग्रेशन लॉयर्स एसोसिएशन (AILA) द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में यह सामने आया कि वीज़ा रद्दीकरण के मामलों में लगभग 50% छात्र भारतीय हैं। 327 प्रतिक्रियाओं पर आधारित यह सर्वे, लगभग 4,000 मामलों को कवर करता है जिसमें छात्रों को SEVIS (Student and Exchange Visitor Information System) से संबंधित कारणों के आधार पर नोटिस दिया गया।
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि:
- 50% वीज़ा रद्द भारतीय छात्रों के थे।
- 14% चीन से, और
- अन्य देशों में दक्षिण कोरिया, नेपाल, बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देश शामिल हैं।
भारत की प्रतिक्रिया: छात्रों के हित में खुला मोर्चा
भारत सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए राजनयिक चैनलों के माध्यम से अमेरिका से अपनी चिंता जाहिर की है। सूत्रों के अनुसार, यह मुद्दा सोमवार को दिल्ली में होने वाली भारत-अमेरिका उच्चस्तरीय वार्ता में भी प्रमुखता से उठाया जाएगा, जिसमें अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस और दक्षिण-मध्य एशिया मामलों के सहायक विदेश मंत्री रिकी गिल भाग लेंगे।
विदेश मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि, “हम चाहते हैं कि हमारे छात्रों को न्याय मिले और उन्हें किसी प्रकार का भेदभाव न झेलना पड़े। उच्च शिक्षा कोई अपराध नहीं है, और बिना ठोस आधार के वीज़ा रद्द किया जाना स्वीकार्य नहीं है।”
अमेरिका का जवाब: कोई पक्षपात नहीं
जब अमेरिका से इस मुद्दे पर सवाल पूछा गया, तो एक वरिष्ठ अमेरिकी अधिकारी ने कहा कि, “वीज़ा निरस्तीकरण की प्रक्रिया पूरी तरह से नियमों और सुरक्षा प्रोटोकॉल पर आधारित है। इसमें किसी विशेष देश या राष्ट्रीयता के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह नहीं है।”
अधिकारी ने आगे बताया कि वीज़ा रद्दीकरण कई कारकों पर आधारित है:
- वीज़ा शर्तों का उल्लंघन
- SEVIS स्टेटस में विसंगति
- सुरक्षा से संबंधित जानकारी
- सोशल मीडिया पर असामान्य गतिविधियाँ
AI-सहायता प्राप्त Catch & Revoke प्रोग्राम: नई चिंता
इस पूरे विवाद में एक नया मोड़ तब आया जब अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने हाल ही में AI-सहायता प्राप्त 'Catch & Revoke' कार्यक्रम शुरू किया। इस प्रोग्राम का उद्देश्य ऐसे छात्रों की पहचान करना है, जिनकी विचारधारा या गतिविधियाँ अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए "संभावित खतरा" मानी जाती हैं।
इस कार्यक्रम के तहत:
- छात्रों के सोशल मीडिया प्रोफाइल स्कैन किए जाते हैं
- उनके विचारों का विश्लेषण किया जाता है
- अगर कोई छात्र अमेरिकी विदेश नीति के विरुद्ध या भारत समर्थक बयान देता है, तो उसका प्रोफाइल ‘संभावित जोखिम’ के रूप में दर्ज किया जा सकता है
यह कार्यक्रम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर एक सवालिया निशान खड़ा करता है, विशेषकर तब जब इसके दायरे में सबसे ज़्यादा भारतीय छात्र आ रहे हैं।
प्रभावित छात्रों की कहानियाँ: असमंजस और असहायता
AILA की रिपोर्ट के अनुसार, दो भारतीय शोधकर्ता — रंजनी श्रीनिवासन और बदार खान सूरी — ऐसे पहले छात्र थे जिन्हें हिरासत में लिया गया या अमेरिका छोड़ने को कहा गया। इनमें से कई छात्र पूर्णकालिक पीएचडी या पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च कर रहे थे और उनके पास सभी वैध कागजात थे।
एक छात्र ने गुमनाम रहते हुए बताया:
"हमने सपने देखे थे कि हम अमेरिका में उच्च शिक्षा लेकर भारत का नाम रोशन करेंगे। लेकिन बिना किसी ठोस कारण के वीज़ा रद्द करना बहुत अन्यायपूर्ण है।"
भारत की रणनीति: न्याय के लिए कूटनीतिक दबाव
भारत ने अमेरिकी अधिकारियों से मांग की है कि:
- सभी वीज़ा निरस्तीकरण मामलों की निष्पक्ष जांच की जाए
- छात्रों को अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिले
- भविष्य में ऐसी किसी प्रक्रिया को पारदर्शी बनाया जाए
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को अब 'High-Level Consular Dialogue' की मांग करनी चाहिए, ताकि छात्र-वीज़ा नीतियों में पारदर्शिता लाई जा सके।
शिक्षा और विदेश नीति का टकराव
आज अमेरिका में लाखों भारतीय छात्र उच्च शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे में यह विवाद केवल एक प्रशासनिक मुद्दा नहीं, बल्कि यह भारत-अमेरिका संबंधों की नींव — शिक्षा और नवाचार सहयोग — को भी प्रभावित कर सकता है।
भारतीय छात्रों का योगदान न केवल अकादमिक क्षेत्रों में है, बल्कि वे अमेरिका की टेक्नोलॉजी, मेडिकल रिसर्च और स्टार्टअप इकोसिस्टम को भी मजबूती प्रदान करते हैं।
क्या भविष्य में बदलेगी दिशा?
भारतीय छात्रों पर अमेरिका द्वारा वीज़ा रद्द करने की घटनाएं कहीं न कहीं एक गहरी चिंता को जन्म देती हैं। सवाल यह नहीं है कि वीज़ा क्यों रद्द हुआ, बल्कि सवाल यह है कि क्या यह प्रक्रिया निष्पक्ष थी? क्या छात्रों को अपना पक्ष रखने का अवसर मिला? क्या किसी विशेष देश के छात्रों को लक्ष्य बनाया गया?
भारत सरकार की सक्रियता और छात्रों की आवाज़ें शायद इस प्रणाली में बदलाव ला सकें। लेकिन तब तक यह ज़रूरी है कि ऐसे सभी मामले पारदर्शिता, निष्पक्षता और संवेदनशीलता के साथ सुलझाए जाएं।

