भारत ने रचा इतिहास: जीनोम एडिटिंग से धान की नई किस्में विकसित करने वाला पहला देश बना
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भारत ने कृषि विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए दुनिया के सामने खुद को एक नई ऊँचाई पर स्थापित कर दिया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने पहली बार जीनोम एडिटिंग तकनीक का उपयोग करके धान की दो नई और अत्यधिक उत्पादक किस्में विकसित की हैं। यह उपलब्धि भारत को उन चुनिंदा देशों की श्रेणी में ला खड़ा करती है, जिन्होंने खेती को वैज्ञानिक तरीके से बदलने की दिशा में बड़ा योगदान दिया है।
इस ऐतिहासिक प्रगति के साथ ही भारत, जीनोम एडिटिंग के माध्यम से धान की किस्में विकसित करने वाला विश्व का पहला देश बन गया है। यह कदम न केवल देश की कृषि उत्पादकता को नई ऊँचाई देगा, बल्कि पर्यावरण और किसानों की आमदनी के लिहाज़ से भी बेहद अहम माना जा रहा है।
क्या है जीनोम एडिटिंग?
जीनोम एडिटिंग एक अत्याधुनिक जैव प्रौद्योगिकी तकनीक है, जिसकी मदद से वैज्ञानिक पौधों के डीएनए में बेहद सटीक बदलाव कर सकते हैं। इसका उद्देश्य फसलों को रोगों से लड़ने की क्षमता देना, उनकी उत्पादकता बढ़ाना, कम पानी और संसाधनों में तैयार करना तथा पोषण गुणवत्ता को बेहतर बनाना है। यह तकनीक पारंपरिक GMO (Genetically Modified Organism) से अलग है और अधिक स्वाभाविक बदलाव करती है।
ICAR की ऐतिहासिक उपलब्धि
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के वैज्ञानिकों ने पूसा बासमती-100 और पूसा बासमती-1692 नामक दो धान की किस्में विकसित की हैं, जिनमें जीनोम एडिटिंग के माध्यम से बैक्टीरियल ब्लाइट (BLB) रोधक जीन को जोड़ा गया है। यह जीन 'सांबा महसूरी' नामक एक पारंपरिक धान किस्म से लिया गया है, जो पूर्वी भारत में प्राकृतिक रूप से पाई जाती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता के लिए जानी जाती है।
यह दोनों किस्में खासतौर पर उन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त हैं जहाँ कम पानी उपलब्ध होता है और मानसून अस्थिर होता है। इनमें कम लागत में अधिक उपज देने की क्षमता है और ये कम समय में पक जाती हैं, जिससे किसानों को अधिक लाभ मिलता है।
2018 से शुरू हुई थी रिसर्च
इस परियोजना की शुरुआत वर्ष 2018 में हुई थी, जब ICAR के अंतर्गत आने वाले नेशनल एग्रीकल्चरल बायोटेक्नोलॉजी इंस्टीट्यूट (NABI), हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने धान की पारंपरिक किस्मों की जीन संरचना पर काम शुरू किया। उन्होंने जीनोम एडिटिंग तकनीक CRISPR-Cas9 का उपयोग करते हुए 45 से अधिक ट्रांसजेनिक बासमती किस्मों की स्क्रीनिंग की और उनमें से सबसे अधिक उत्पादक और रोग-प्रतिरोधक किस्मों को चुना।
पूसा बासमती-100 और 1692 की विशेषताएं
- उत्पादकता: औसतन 5.3 टन प्रति हेक्टेयर, जो सांबा महसूरी की तुलना में 20% अधिक है।
- रोग प्रतिरोधक क्षमता: इनमें BLB (बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट) जैसे गंभीर रोगों के खिलाफ बेहतर सुरक्षा है।
- कम लागत और कम समय: ये किस्में 120 दिनों के भीतर तैयार हो जाती हैं और पानी की खपत भी 30% तक कम करती हैं।
- उत्कृष्ट स्वाद और खुशबू: चावल की गुणवत्ता में कोई समझौता नहीं किया गया है; इनकी खुशबू और स्वाद बासमती चावल की विशिष्टता को बनाए रखते हैं।
किन राज्यों के लिए हैं उपयुक्त?
ये किस्में विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों के लिए अनुकूल हैं, जहाँ मानसून की अनिश्चितता और जल संकट जैसी समस्याएं आम हैं। इन किस्मों की खेती से इन राज्यों के किसानों को आर्थिक रूप से बड़ी राहत मिलेगी।
क्या बोले केंद्रीय कृषि मंत्री?
इन किस्मों को हाल ही में नई दिल्ली में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लॉन्च किया। इस मौके पर उन्होंने कहा:
"भारत का यह कदम कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक नवाचार की मिसाल है। यह तकनीक किसानों की आमदनी बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में क्रांतिकारी बदलाव लाएगी।"
उन्होंने यह भी कहा कि भारत अब केवल उपभोक्ता देश नहीं, बल्कि तकनीकी नवाचार का नेतृत्व करने वाला देश बन चुका है।
क्यों है यह उपलब्धि महत्वपूर्ण?
- खाद्य सुरक्षा: जलवायु परिवर्तन और बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए अधिक उत्पादक और टिकाऊ फसलों की जरूरत बढ़ती जा रही है।
- पर्यावरणीय लाभ: कम पानी की खपत और कम कीटनाशक उपयोग से पर्यावरण पर बोझ कम होगा।
- वैश्विक प्रतिस्पर्धा: भारत की यह तकनीक अन्य विकासशील देशों के लिए उदाहरण बन सकती है, जिससे देश को जैव प्रौद्योगिकी निर्यात में भी बढ़त मिलेगी।
आगे की दिशा
ICAR अब इन किस्मों की व्यावसायिक खेती के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर काम करेगा। इसके अलावा, इस तकनीक को गेहूं, मक्का और दलहन जैसी अन्य फसलों में भी लागू करने की योजना है। इससे भविष्य में किसानों की निर्भरता कम होगी और कृषि क्षेत्र अधिक सशक्त होगा।
भारत द्वारा जीनोम एडिटिंग तकनीक से धान की किस्में विकसित करना न केवल एक वैज्ञानिक उपलब्धि है, बल्कि यह देश की कृषि नीति, खाद्य सुरक्षा और किसानों के भविष्य को लेकर एक सकारात्मक संकेत भी है। ऐसे समय में जब जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी वैश्विक चुनौती बन चुकी है, भारत का यह कदम पूरे विश्व के लिए एक रोशनी की किरण बनकर उभरा है।
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