ISRO’s 101st Mission असफल: National Security को पड़ा असर

इसरो का 101वां मिशन असफल: EOS-09 सैटेलाइट ने अंतरिक्ष में साथ नहीं दिया, देश की निगरानी क्षमताओं को झटका

ISRO’s 101st Mission असफल: National Security को पड़ा असर

श्रीहरिकोटा जब रविवार सुबह देशभर की निगाहें आसमान की ओर थीं और हर भारतीय को इसरो से एक और कामयाबी की उम्मीद थी, तब कुछ ही मिनटों में हालात बदल गए। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का 101वां मिशन, जिसका उद्देश्य था अत्याधुनिक अर्थ ऑब्जर्वेशन सैटेलाइट EOS-09 को अंतरिक्ष में तैनात करना, तकनीकी खामी के चलते असफल हो गया।

ये मिशन भारत की अंतरिक्ष उपलब्धियों की श्रृंखला में एक बड़ा कदम माना जा रहा था, जो कि न सिर्फ विज्ञान और प्रौद्योगिकी बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से भी बेहद अहम था।


क्या था EOS-09 मिशन?

EOS-09 एक अत्याधुनिक “जासूसी सैटेलाइट” था, जिसे खासतौर पर भारत की सीमा सुरक्षा, शहरी विकास, और आपदा प्रबंधन जैसे संवेदनशील क्षेत्रों के लिए डिजाइन किया गया था। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह थी कि यह हर मौसम में, दिन-रात, और घने बादलों के बीच भी ज़मीन की सतह की हाई रिज़ोल्यूशन तस्वीरें लेने में सक्षम था।

यह उपग्रह भारतीय सेना, खुफिया एजेंसियों और वैज्ञानिकों को बेहद सटीक डेटा प्रदान करता, जिससे सीमाओं की निगरानी, आतंकवादी गतिविधियों की पहचान और प्राकृतिक आपदाओं के समय त्वरित निर्णय लेना संभव हो पाता।


लॉन्च का रोमांच और अचानक आई निराशा

19 मई की सुबह 5:59 बजे, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र, श्रीहरिकोटा से PSLV-C61 रॉकेट के ज़रिए EOS-09 का प्रक्षेपण किया गया। पहले और दूसरे चरणों में रॉकेट ने शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन तीसरे चरण में तकनीकी खामी आ गई। कुछ ही मिनटों बाद मिशन को असफल घोषित कर दिया गया।

इसरो प्रमुख वी. नारायणन ने कहा:

“हमने PSLV-C61 के चार चरणों में से पहले दो में सफलता पाई, लेकिन तीसरे चरण के दौरान असामान्यता देखी गई। हम पूरे डेटा की बारीकी से जांच कर रहे हैं। जल्द ही हम फिर लौटेंगे, और और भी मजबूत होकर लौटेंगे।”


क्या कारण रहा विफलता का?

ISRO’s 101st Mission असफल: National Security को पड़ा असर

अब तक मिली जानकारी के अनुसार, PSLV रॉकेट के तीसरे चरण में इंजन बर्न के दौरान कुछ तकनीकी खामी आई, जिसके चलते उपग्रह सही कक्षा (Orbit) में स्थापित नहीं हो पाया। यह बर्न प्रक्रिया रॉकेट को गति देने और उसे वांछित ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए आवश्यक होती है।

ISRO की तकनीकी टीम मिशन के हर सेकंड की टेलीमेट्री डेटा को खंगाल रही है ताकि कारणों का सही-सही पता लगाया जा सके।


राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर

EOS-09 की असफलता का सबसे बड़ा असर देश की सीमा सुरक्षा और खुफिया निगरानी क्षमताओं पर पड़ सकता है। इस उपग्रह को विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए डिजाइन किया गया था।

हाल ही में भारत द्वारा किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ जैसे सफल अभियानों के बाद EOS-09 जैसी निगरानी क्षमताओं की भूमिका और बढ़ जाती है। यह सैटेलाइट 24x7 निगरानी में सक्षम होता और दुश्मन की हर हरकत को कैमरे में कैद करता।

अब जब यह मिशन सफल नहीं हो सका, तो देश को कुछ समय तक पुराने सैटेलाइट्स जैसे RISAT, CartoSat, और Resourcesat पर निर्भर रहना होगा।


इसरो की प्रतिष्ठा को कितना नुकसान?

ISRO एक ऐसा संगठन है जिसने बेहद सीमित संसाधनों के साथ अंतरिक्ष की दुनिया में भारत को ऊंचाई तक पहुंचाया है। चंद्रयान, मंगलयान और हाल ही में चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग जैसे मिशनों के बाद यह विफलता जरूर एक झटका है, लेकिन किसी भी वैज्ञानिक संस्था के लिए यह असामान्य नहीं है।

इसरो के पास 100 से अधिक सफल मिशनों का ट्रैक रिकॉर्ड है। एक मिशन की विफलता न तो उसकी प्रतिबद्धता पर सवाल उठाती है और न ही उसके वैज्ञानिक कौशल पर।


EOS-09 की तकनीकी क्षमताएं – क्या खोया भारत ने?

इस सैटेलाइट में निम्नलिखित विशेषताएं थीं:

  • Synthetic Aperture Radar (SAR) तकनीक
  • 24 घंटे निगरानी की क्षमता
  • हर मौसम में ऑपरेशन
  • बादलों और अंधेरे में भी हाई-रिज़ोल्यूशन इमेज लेना
  • सीमावर्ती इलाकों की रियल टाइम ट्रैकिंग
  • शहरी विकास के लिए सटीक मैपिंग

यह सैटेलाइट न सिर्फ सुरक्षा के लिए, बल्कि कृषि, खनन, वन संरक्षण, और आपदा प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में भी क्रांतिकारी साबित होता।


रक्षा विशेषज्ञों की राय

पूर्व एयर वाइस मार्शल अर्जुन उपाध्याय कहते हैं:

“EOS-09 का फेल होना दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन यह अंतरिक्ष अभियानों का हिस्सा है। भारत की मौजूदा निगरानी क्षमताएं अभी भी सशक्त हैं। ISRO को जल्द ही इस सैटेलाइट का उन्नत संस्करण लॉन्च करना चाहिए।”

वहीं सुरक्षा विशेषज्ञ ब्रिगेडियर (रि.) आलोक माथुर के अनुसार:

“यह मिशन अगर सफल होता, तो LOC और LAC पर हमें अतिरिक्त आंखें मिलतीं। हालांकि हमारे पास अन्य विकल्प हैं, लेकिन इसरो को इस विफलता से जल्द बाहर आना होगा।”


ISRO की आगे की राह

ISRO पहले से ही कई बड़े प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहा है। गगनयान, निसार मिशन, और अद्वितीय सौर मिशन आदित्य-एल1 जैसी परियोजनाएं लाइन में हैं। EOS-09 की असफलता को दरकिनार करते हुए इसरो जल्द ही इसका उन्नत संस्करण या बैकअप सैटेलाइट लॉन्च कर सकता है।

इसरो की खासियत ही यही है — वह हर गिरावट के बाद और ऊंचा उड़ता है।


 WORLD HEADLINES का निष्कर्ष,एक असफलता, लेकिन अंत नहीं

EOS-09 की विफलता निश्चित रूप से एक दुखद पल है, लेकिन यह विज्ञान और खोज की राह में एक सामान्य पड़ाव है। इसरो ने हमें चंद्रमा, मंगल और सूर्य तक पहुंचाया है – और अब यह असफलता भी उसे नई तकनीक, बेहतर योजना और आत्मविश्वास के साथ और मजबूत बनाएगी।

हर भारतीय को इसरो पर गर्व है और विश्वास भी कि जल्द ही वह एक नई ऊंचाई से लौटेगा — और तब EOS-09 जैसी निगरानी क्षमताएं हमारी सीमाओं की और भी बेहतर सुरक्षा करेंगी।


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