UNESCO रिपोर्ट का खुलासा: STEM में सिर्फ 35% महिलाएं, डिजिटल दुनिया में भी लैंगिक असमानता

STEM में सिर्फ 35% महिलाएं, UNESCO की रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा — डिजिटल युग में लैंगिक असमानता बनी चुनौती

STEM में सिर्फ 35% महिलाएं, UNESCO की रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा — डिजिटल युग में लैंगिक असमानता बनी चुनौ

WORLD HEADLINES 
19 मई 2025 

विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित यानी STEM (Science, Technology, Engineering, Mathematics) जैसे क्षेत्रों में आज पूरी दुनिया की प्रगति निर्भर करती है, लेकिन यूनेस्को की वैश्विक शिक्षा निगरानी रिपोर्ट ने इस क्षेत्र में महिलाओं की बेहद कम भागीदारी पर गहरी चिंता जताई है। रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में सिर्फ 35 प्रतिशत महिलाएं ही STEM ग्रेजुएट हैं। यह आंकड़ा न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि यह लैंगिक समानता के तमाम दावों पर भी प्रश्नचिह्न लगाता है।

गणित में आत्मविश्वास की कमी और लैंगिक पूर्वाग्रह हैं बड़ी वजहें

यूनेस्को की रिपोर्ट बताती है कि STEM में महिलाओं की कम उपस्थिति के पीछे सबसे बड़ी वजह गणित जैसे विषयों में आत्मविश्वास की कमी और लैंगिक रूढ़िवादिता है। खासकर विकासशील देशों में यह मान्यता आज भी प्रचलित है कि विज्ञान या गणित ‘लड़कों के विषय’ हैं।
कई लड़कियां बचपन से ही इस सामाजिक सोच के कारण STEM से खुद को अलग कर लेती हैं, चाहे उनके अंदर प्रतिभा क्यों न हो।

डिजिटल परिवर्तन में भी महिलाएं पीछे, एआई और डेटा साइंस में सिर्फ 26% हिस्सेदारी

यह असमानता सिर्फ शिक्षा तक सीमित नहीं है। डिजिटल युग के नेतृत्व में भी महिलाओं की भागीदारी बेहद सीमित है। रिपोर्ट के अनुसार, डेटा साइंस और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) जैसे उभरते हुए क्षेत्रों में महिलाओं की हिस्सेदारी मात्र 26 प्रतिशत है।
इंजीनियरिंग में यह आंकड़ा 15% तक गिर जाता है और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे तकनीकी क्षेत्र में तो सिर्फ 12% महिलाएं ही कार्यरत हैं। यह अंतर न केवल सामाजिक विकास के लिए चुनौती है, बल्कि डिजिटल क्षेत्र की विविधता और समावेशिता के लिए भी खतरे की घंटी है।

यूरोपीय संघ में भी समान स्थिति, IT डिग्री के बावजूद महिलाएं डिजिटल बिजनेस में कम

UNESCO की रिपोर्ट में यूरोपीय संघ (EU) के आंकड़े भी सामने आए हैं। वहां पर चार में से सिर्फ एक महिला, जिसने सूचना प्रौद्योगिकी में डिग्री हासिल की है, डिजिटल कारोबार से जुड़ती है, जबकि पुरुषों में यह अनुपात दो में से एक है।
यह साफ संकेत है कि केवल शिक्षा ही नहीं, बल्कि रोजगार और नेतृत्व की दुनिया में भी लैंगिक असमानता कायम है।

नीतियों की कमी नहीं, लेकिन लड़कियों के लिए केंद्रित नीतियां सिर्फ आधी

STEM में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 68 प्रतिशत देशों ने कुछ न कुछ नीतियां जरूर बनाई हैं। लेकिन इनमें से सिर्फ आधी नीतियां ही लड़कियों और महिलाओं पर केंद्रित हैं
UNESCO ने सुझाव दिया है कि:

  • STEM शिक्षा के प्रारंभिक स्तर पर ही लड़कियों के आत्मविश्वास को बढ़ाया जाए
  • महिला रोल मॉडल को बढ़ावा दिया जाए ताकि प्रेरणा मिल सके
  • भेदभाव मुक्त शिक्षा माहौल तैयार किया जाए
  • डिजिटल शिक्षा को सभी के लिए सुलभ बनाया जाए

डिजिटल दक्षताओं का ढांचा बनाना समय की मांग

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सभी देशों को मिलकर एक "डिजिटल दक्षता ढांचा" तैयार करना चाहिए, जो शिक्षार्थियों को आवश्यक डिजिटल और तकनीकी कौशल में मार्गदर्शन दे सके।
यह ढांचा खासकर कमजोर वर्गों और महिलाओं के लिए लाभकारी होगा, ताकि वे भविष्य की नौकरियों के लिए तैयार हो सकें।

महिलाओं को STEM में लाने से क्या होंगे फायदे?

विशेषज्ञों का मानना है कि STEM में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने से न सिर्फ लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि सामाजिक और आर्थिक विकास को भी नई दिशा मिलेगी
AI, Robotics, Data Science और Cyber Security जैसे क्षेत्रों में महिलाओं का दृष्टिकोण नई संभावनाएं और संवेदनशीलता ला सकता है, जिससे तकनीकी विकास अधिक संतुलित और समावेशी होगा।

भारत में क्या है स्थिति?

भारत जैसे देश में, जहां विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में तेज़ी से विस्तार हो रहा है, वहां भी स्थिति कुछ अलग नहीं है।
हालांकि देश की कई संस्थाओं—जैसे कि IITs, IISc और ISRO—में अब लड़कियों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन अब भी ग्रामीण और निम्न आय वर्ग की लड़कियां STEM में बहुत पीछे हैं।
NEP 2020 जैसे नीतिगत प्रयासों के बावजूद, स्थानीय स्तर पर परामर्श, प्रोत्साहन और संसाधनों की कमी एक बड़ी बाधा है।

समाज और सरकार दोनों की है जिम्मेदारी

UNESCO की रिपोर्ट एक चेतावनी है कि अगर समय रहते STEM में महिलाओं की भागीदारी नहीं बढ़ाई गई, तो हम तकनीकी रूप से विकसित भले हो जाएं, लेकिन सामाजिक रूप से अधूरे रह जाएंगे।
इसके लिए ज़रूरी है कि:

  • सरकार STEM शिक्षा में लैंगिक समानता पर विशेष ध्यान दे
  • विद्यालयों में करियर काउंसलिंग और साइंस लीडरशिप प्रोग्राम्स लागू किए जाएं
  • मीडिया और सोशल प्लेटफ़ॉर्म पर महिला वैज्ञानिकों की कहानियों को सामने लाया जाए
  • प्राइवेट सेक्टर भी महिलाओं के लिए जॉब, ट्रेनिंग और लीडरशिप रोल्स बढ़ाए

WORLD HEADLINES का निष्कर्ष: डिजिटल युग में लैंगिक समानता नहीं तो विकास अधूरा

STEM में लैंगिक असमानता न केवल एक शैक्षिक या तकनीकी मुद्दा है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और समान अवसरों के मूलभूत सिद्धांत को चुनौती देता है।
अगर हमें एक न्यायपूर्ण, प्रगतिशील और समावेशी डिजिटल भविष्य की ओर बढ़ना है, तो STEM में महिलाओं की भागीदारी को प्राथमिकता देनी ही होगी।
UNESCO की रिपोर्ट केवल आंकड़ों की कहानी नहीं है, यह एक वैश्विक कॉल टू एक्शन है—जिसे अनसुना करना आने वाली पीढ़ियों के साथ अन्याय होगा।


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