होर्मुज पर ताला? अमेरिका के तेल वर्चस्व पर संकट, भारत किसके साथ खड़ा होगा?
परिचय: एक जलमार्ग जो दुनिया की सांसें रोक सकता है
मध्य पूर्व का एक छोटा सा जलमार्ग—होर्मुज जलडमरूमध्य (Strait of Hormuz)—आजकल वैश्विक राजनीति और भू-रणनीति के केंद्र में आ गया है। ईरान और अमेरिका के बीच तनाव के चलते यह जलडमरूमध्य एक बार फिर चर्चा में है। हाल ही में ईरानी संसद द्वारा इसे बंद करने की मंजूरी देने के बाद पूरी दुनिया में तेल संकट की आशंका गहराने लगी है। अमेरिका ने चीन से भी अनुरोध किया है कि वह ईरान पर दबाव बनाए, ताकि यह कदम न उठाया जाए। सवाल यह है कि क्या वाकई ईरान इतना बड़ा जोखिम उठाएगा? और अगर उठाता है, तो इसका असर भारत और बाकी दुनिया पर क्या होगा?
होर्मुज जलडमरूमध्य: वैश्विक तेल व्यापार की नाड़ी
होर्मुज जलडमरूमध्य फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और अरब सागर से जोड़ता है। यह दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण तेल परिवहन मार्ग है। सऊदी अरब, ईरान, इराक, यूएई और कुवैत जैसे देशों का अधिकांश तेल इसी रास्ते से दुनिया भर में भेजा जाता है। यह इतना संकरा है कि इसकी सबसे पतली जगह पर चौड़ाई मात्र 33 किलोमीटर है, और जहाजों के गुजरने की वास्तविक चौड़ाई सिर्फ 3 किलोमीटर।
तेल का महामार्ग
अमेरिकी ऊर्जा सूचना प्रशासन (EIA) के अनुसार, 2024 और 2025 की पहली तिमाही में दुनिया भर में समुद्र के रास्ते भेजे जाने वाले कच्चे तेल का 25% से अधिक हिस्सा केवल इसी जलडमरूमध्य से होकर गुजरा। इतना ही नहीं, तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का भी लगभग 20% व्यापार इसी मार्ग से हुआ।
ईरान की चेतावनी: तेल को हथियार बनाने की रणनीति
ईरान वर्षों से कहता रहा है कि अगर अमेरिका या इजरायल उस पर हमला करते हैं या दबाव बढ़ाते हैं, तो वह होर्मुज को बंद कर सकता है। अब जबकि ईरान और इजरायल के बीच तनाव चरम पर है और अमेरिका की सैन्य गतिविधियां बढ़ रही हैं, ईरानी संसद ने होर्मुज को बंद करने की कानूनी मंजूरी दे दी है।
हालांकि अंतिम निर्णय ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल लेगी, लेकिन संकेत साफ हैं—ईरान इस बार पीछे हटने वाला नहीं दिख रहा। यह निर्णय वैश्विक बाजारों में भय और अनिश्चितता की लहर फैला सकता है।
अमेरिका की प्रतिक्रिया: चीन से उम्मीदें
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने फॉक्स न्यूज पर खुले तौर पर चीन से कहा है कि वह ईरान पर दबाव बनाए। उनका कहना है कि चीन खुद भी होर्मुज जलडमरूमध्य से आने वाले तेल पर निर्भर है, इसलिए यह उसका भी नुकसान होगा। रुबियो ने यह भी कहा कि अगर ईरान यह कदम उठाता है, तो यह “आर्थिक आत्महत्या” के बराबर होगा।
भू-राजनीतिक समीकरण: भारत किसके साथ?
भारत की तेल निर्भरता और रणनीतिक संतुलन
भारत अपनी कुल तेल जरूरत का लगभग 85% आयात करता है, और इनमें से एक बड़ी मात्रा मध्य-पूर्व से आती है। हालांकि भारत अब रूस, अमेरिका और अफ्रीका जैसे अन्य देशों से भी तेल आयात कर रहा है, लेकिन होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर आने वाले तेल की अहमियत अब भी बनी हुई है।
भारत का झुकाव अमेरिका और इजरायल की ओर अधिक दिखाई देता है। ईरान से भारत ने वर्षों पहले तेल आयात बंद कर दिया था और चाबहार बंदरगाह परियोजना पर भी अब कोई तेज़ प्रगति नहीं हो रही। वहीं, भारत और इजरायल के बीच रक्षा सहयोग गहराता जा रहा है—ड्रोन, मिसाइल और साइबर डिफेंस में।
भारत की कूटनीतिक भूमिका
फिर भी भारत ने हमेशा पश्चिम एशिया में शांति और स्थिरता का समर्थन किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में ईरानी राष्ट्रपति से फोन पर बात की और स्थिति को संभालने का आग्रह किया। भारत की स्थिति साफ है—हम शांति के पक्षधर हैं, लेकिन रणनीतिक रूप से अमेरिका और इजरायल हमारे ज्यादा करीबी सहयोगी हैं।
क्या वाकई हो सकता है होर्मुज पर ताला?
तकनीकी रूप से ईरान जलडमरूमध्य को माइन बिछाकर, मिसाइल हमले करके, साइबर अटैक से या नौकाओं को रोके जाने के माध्यम से अस्थायी रूप से अवरुद्ध कर सकता है। लेकिन यह खुद ईरान की अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि ईरान के खुद के तेल निर्यात भी इसी मार्ग पर निर्भर हैं।
इतिहास की नज़र से देखें
1980 के दशक के ईरान-इराक युद्ध के दौरान भी दोनों देशों ने इस मार्ग से गुजरने वाले जहाजों पर हमले किए थे, लेकिन इस मार्ग को पूरी तरह से ब्लॉक नहीं किया गया था। कारण साफ था—आर्थिक नुकसान दोनों को उठाना पड़ता।
होर्मुज का कोई विकल्प नहीं: चिंता क्यों बड़ी है
होर्मुज की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि इसका कोई व्यवहारिक समुद्री विकल्प नहीं है। कुछ सीमित मात्रा में तेल को पाइपलाइनों के जरिये लाल सागर या ओमान की खाड़ी तक ले जाया जा सकता है, लेकिन यह मात्रा बहुत कम है।
तेल के साथ-साथ दुनिया की अर्थव्यवस्था भी लड़खड़ाएगी
यदि होर्मुज बंद होता है, तो तेल और गैस की कीमतों में भारी उछाल आ सकता है। इससे केवल पेट्रोल-डीजल ही नहीं, बल्कि ट्रांसपोर्ट, खाद्य पदार्थ, मैन्युफैक्चरिंग और बिजली उत्पादन तक हर क्षेत्र प्रभावित होगा।
होर्मुज: एक जलमार्ग, कई कहानियां
होर्मुज का उल्लेख प्राचीन ग्रंथों और यात्रावृत्तांतों में भी मिलता है। 'पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी' जैसे प्राचीन नाविकों के ग्रंथों में इसे "फारस की खाड़ी का प्रवेशद्वार" कहा गया है। 10वीं से 17वीं शताब्दी तक ओर्मस साम्राज्य ने यहां शासन किया था। इसी के नाम पर इसे “होर्मुज” कहा गया।
WORLD HEADLINES का निष्कर्ष: संकट से समाधान की ओर
Strait of Hormuz की मौजूदा स्थिति केवल एक भौगोलिक संघर्ष नहीं है, बल्कि यह ऊर्जा सुरक्षा, वैश्विक राजनीति, कूटनीति और रणनीतिक गठजोड़ का ज्वलंत उदाहरण है। भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था के लिए यह वक्त सतर्कता और संतुलन का है।
शांति की आशा बनाए रखते हुए भारत को तेल आयात के विविधीकरण, वैश्विक साझेदारियों और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में और तेज़ी से काम करना होगा। क्योंकि इस जलडमरूमध्य पर एक छोटी सी चिंगारी, पूरे वैश्विक बाज़ार को जला सकती है।

