Vice President का इस्तीफा: क्या ये सिर्फ Health Reason है?

धनखड़ का ‘स्वास्थ्य कारणों’ से इस्तीफा: कार्यकाल के बीच पद छोड़ने का ऐलान, क्या हैं राजनीतिक मायने?

Vice President का इस्तीफा: क्या ये सिर्फ Health Reason है?

2025 के मानसून सत्र के पहले ही दिन भारतीय राजनीति में बड़ा उथल-पुथल देखने को मिला। देश के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने अचानक अपने पद से स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए इस्तीफा दे दिया। इस घोषणा ने संसद के गलियारों से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों तक को चौंका दिया है। यह इस्तीफा न केवल संवैधानिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ भी गहरे हैं।


स्वास्थ्य कारण या राजनीतिक संकेत?

राज्यसभा की कार्यवाही के दौरान उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की घोषणा की गई, जिसमें उन्होंने स्वास्थ्य कारणों को प्रमुख वजह बताया। पिछले कुछ समय से वे दिल्ली AIIMS में भर्ती थे और स्वास्थ्य जटिलताओं से जूझ रहे थे। हालांकि, इस तरह अचानक कार्यकाल के बीच में इस्तीफा देना कई सवाल खड़े करता है।

कुछ राजनीतिक विशेषज्ञ इसे सिर्फ स्वास्थ्य का मामला नहीं मानते, बल्कि इसके पीछे संभावित राजनीतिक रणनीति या असहमति को भी देखते हैं। खासकर जब देश 2026 में होने वाले आम चुनावों की दिशा में तेजी से बढ़ रहा है।


कार्यकाल का आधा सफर: उपलब्धियां और सवाल

जगदीप धनखड़ ने 11 अगस्त 2022 को भारत के 14वें उपराष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी। उनका कार्यकाल 10 अगस्त 2027 तक निर्धारित था, लेकिन उन्होंने लगभग दो वर्ष पहले ही इस्तीफा दे दिया। उनके इस कदम ने न केवल संसदीय इतिहास में एक उल्लेखनीय अध्याय जोड़ा, बल्कि उनकी कार्यशैली, निर्णय, और भाषणों को लेकर भी नए सिरे से चर्चा शुरू हो गई है।

उनकी प्रमुख उपलब्धियों में राज्यसभा की कार्यवाही को अपेक्षाकृत शांतिपूर्ण बनाना, अनुशासन बनाए रखना, और सांसदों के प्रश्नों का गंभीरता से जवाब लेना शामिल रहा है। हालांकि विपक्ष अक्सर उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाता रहा।


राजनीतिक यात्रा: किसान पुत्र से उपराष्ट्रपति तक

धनखड़ का जन्म 18 मई 1951 को राजस्थान के झुंझुनूं जिले के एक छोटे से गांव किठाना में हुआ था। वे एक साधारण किसान परिवार से थे और उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से हुई। आगे चलकर उन्होंने भौतिक विज्ञान में स्नातक और फिर कानून की पढ़ाई की।

  • उन्होंने 1989 में जनता दल के टिकट पर झुंझुनूं से सांसद का चुनाव जीतकर संसद में प्रवेश किया।
  • बाद में वे कांग्रेस और फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से जुड़े।
  • वे राजस्थान सरकार में मंत्री भी रहे।
  • 2019 में उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया, जहां उन्होंने राज्य सरकार के साथ कई मुद्दों पर सख्त रुख अपनाया।
  • 22 जुलाई 2022 को वे एनडीए के उम्मीदवार के रूप में उपराष्ट्रपति चुने गए।

 विपक्ष के निशाने पर क्यों रहे धनखड़?

राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य करते हुए धनखड़ का अंदाज़ अपेक्षाकृत सख्त रहा। वे विपक्ष के तीखे सवालों का सामना करने से नहीं हिचकिचाते थे, और कई बार उन्हें कार्यवाही से सांसदों को निलंबित करने जैसे कठोर कदम भी उठाने पड़े।

उनकी टिप्पणी और भाषणों को लेकर भी विपक्ष ने उन्हें "सरकार समर्थक" करार दिया था। विपक्षी नेताओं का मानना था कि राज्यसभा की कार्यवाही निष्पक्षता से संचालित नहीं हो रही। हालांकि, सत्तारूढ़ पक्ष ने उनके काम को सराहा और उन्हें एक सशक्त, स्पष्ट और नियमों का पालन कराने वाला सभापति बताया।


आगे क्या? नए उपराष्ट्रपति का चुनाव कैसे होगा?

संविधान के अनुच्छेद 67(b) के तहत उपराष्ट्रपति इस्तीफा राष्ट्रपति के पास लिखित में भेजते हैं। अगर राष्ट्रपति इस्तीफा स्वीकार कर लेते हैं, तो पद रिक्त माना जाता है।

भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव एक विशिष्ट प्रक्रिया से होता है:

  • चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सभी निर्वाचित सदस्य मतदान करते हैं।
  • मतदान गोपनीय होता है और यह आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से होता है।
  • नए उपराष्ट्रपति का कार्यकाल भी 5 वर्षों के लिए निर्धारित होता है।

अब देखना होगा कि सत्ताधारी गठबंधन किस चेहरे को सामने लाता है और विपक्ष क्या रणनीति अपनाता है।


विपक्ष और जनमानस की प्रतिक्रियाएं

धनखड़ के इस्तीफे की खबर के बाद कई विपक्षी दलों ने ट्वीट और प्रेस बयानों के ज़रिए अपनी प्रतिक्रिया दी। कुछ नेताओं ने उनके निर्णय को व्यक्तिगत बताया तो कुछ ने इसे सरकार की आंतरिक राजनीति का संकेत माना।

वहीं जनता के बीच भी यह सवाल उठ रहा है कि क्या वास्तव में यह सिर्फ स्वास्थ्य कारणों से हुआ, या फिर सत्ता के गलियारों में कोई बड़ी हलचल चल रही है?


 विशेष बिंदु: क्या हो सकते हैं भविष्य के संकेत?

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो:

  • 2026 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा संगठन में कई बड़े बदलाव हो सकते हैं।
  • धनखड़ को पार्टी या संगठन में कोई नई भूमिका दी जा सकती है।
  • वे किसी राज्य में राज्यपाल या सलाहकार के रूप में वापस लौट सकते हैं।
  • विपक्ष यदि एकजुट हुआ तो आगामी उपराष्ट्रपति चुनाव दिलचस्प हो सकता है।

WORLD HEADPHONES का निष्कर्ष:

जगदीप धनखड़ का इस्तीफा भारतीय राजनीति के एक ऐसे मोड़ पर आया है, जब संसद में कई महत्वपूर्ण विधेयक पेश होने हैं और विपक्ष पहले से ही सरकार को घेरने के मूड में है। ऐसे में उपराष्ट्रपति का पद खाली होना और नए चेहरे की तलाश एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है।

यह इस्तीफा सिर्फ एक संवैधानिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि इसके पीछे कई परतें हैं जो आने वाले दिनों में स्पष्ट होंगी। धनखड़ की अब तक की भूमिका को अगर देखा जाए तो उन्होंने अपने कर्तव्यों का गंभीरता से निर्वहन किया, लेकिन उनका कार्यकाल विवादों से भी अछूता नहीं रहा।


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