भारत की ऊर्जा नीति में नया अध्याय: महाराष्ट्र में थोरियम SMR परियोजना शुरू

भारत में थोरियम आधारित लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) की ऐतिहासिक शुरुआत: महाराष्ट्र और रूस के ROSATOM के बीच रणनीतिक समझौता

महाराष्ट्र ने रूस की ROSATOM कंपनी के साथ थोरियम आधारित SMR विकसित करने का समझौता किया है। यह भारत की स्वच्छ ऊर्जा नीति में ऐतिहासिक कदम है।

WORLD HEADLINES | विशेष रिपोर्ट
दिनांक: 14 अप्रैल 2025 | स्थान: भारत

भारत की स्वच्छ ऊर्जा क्रांति को नई दिशा मिलती नजर आ रही है। महाराष्ट्र सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए रूस की राज्य परमाणु ऊर्जा कंपनी ROSATOM के साथ थोरियम आधारित लघु मॉड्यूलर रिएक्टर (Small Modular Reactor - SMR) के संयुक्त विकास के लिए एक महत्वपूर्ण समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं। यह पहल कई मायनों में अभूतपूर्व है — यह पहली बार है जब भारत का कोई राज्य सीधे परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में वैश्विक साझेदार के साथ कदम मिला रहा है।


थोरियम आधारित SMR: तकनीकी क्रांति की ओर

SMR, यानि Small Modular Reactor, छोटे आकार के परमाणु रिएक्टर होते हैं जिन्हें फैक्ट्री में तैयार कर के साइट पर मॉड्यूलर रूप में स्थापित किया जा सकता है। यह तकनीक विशेष रूप से उन क्षेत्रों में उपयुक्त है जहाँ बड़ी परमाणु परियोजनाएं स्थापित करना संभव नहीं होता।

थोरियम आधारित SMR का प्रयोग इसे और भी प्रभावशाली बनाता है क्योंकि थोरियम एक ऐसा फ्यूल है जो भारत में भारी मात्रा में उपलब्ध है और इसे यूरेनियम की तुलना में अधिक सुरक्षित और दीर्घकालिक माना जाता है।


महाराष्ट्र और ROSATOM समझौते की विशेषताएं

  1. ‘मेक इन महाराष्ट्र’ के तहत SMR उत्पादन केंद्र:
    इस MoU के तहत, महाराष्ट्र में एक विशेष SMR असेंबली लाइन स्थापित की जाएगी, जहाँ रूस से प्राप्त तकनीक के आधार पर SMRs का निर्माण और परीक्षण किया जाएगा। इससे राज्य में निवेश, रोजगार और टेक्नोलॉजी ट्रांसफर को बढ़ावा मिलेगा।

  2. MAHAGENCO की भूमिका:
    इस परियोजना को Maharashtra State Power Generation Company (MAHAGENCO) के सहयोग से संचालित किया जाएगा। यह कंपनी राज्य में ऊर्जा उत्पादन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है और इसके पास आवश्यक तकनीकी आधारभूत संरचना भी उपलब्ध है।

  3. ऊर्जा सुरक्षा और आत्मनिर्भरता:
    इस पहल का उद्देश्य भारत की ऊर्जा आत्मनिर्भरता को सशक्त करना है, जिससे न केवल विदेशी ईंधन पर निर्भरता कम होगी, बल्कि भारत स्वच्छ ऊर्जा के वैश्विक अग्रणी देशों में स्थान बना सकेगा।


थोरियम: भारत की ऊर्जा क्षमता का रहस्य

1. भंडार और उपलब्धता

भारत विश्व के सबसे बड़े थोरियम भंडार वाले देशों में से एक है। भारतीय परमाणु ऊर्जा आयोग (DAE) के अनुसार, भारत में लगभग 8.5 लाख टन मोनाज़ाइट रेत मौजूद है, जिसमें प्रमुख रूप से थोरियम पाया जाता है।

2. थोरियम बनाम यूरेनियम

थोरियम बनाम यूरेनियम

भारत की परमाणु नीति में थोरियम का स्थान

भारत की परमाणु नीति तीन चरणों वाली रणनीति पर आधारित है:

  1. प्रथम चरण: प्राकृतिक यूरेनियम से भारी जल रिएक्टर
  2. द्वितीय चरण: प्लूटोनियम आधारित फास्ट ब्रीडर रिएक्टर
  3. तृतीय चरण: थोरियम आधारित रिएक्टर

महाराष्ट्र का यह कदम तीसरे चरण को मजबूत करने की दिशा में व्यावहारिक शुरुआत है। अब तक यह केवल अनुसंधान और प्रोटोटाइप के दायरे में था, लेकिन SMR मॉडल के जरिए यह व्यावसायिक उपयोग की ओर अग्रसर हो रहा है।


SMR: वैश्विक परिदृश्य में भारत की भूमिका

आज के वैश्विक ऊर्जा संकट, जलवायु परिवर्तन और ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते खतरे के बीच SMRs को Game Changer माना जा रहा है। अमेरिका, कनाडा, रूस, चीन जैसे देश पहले से SMR डेवलपमेंट में निवेश कर रहे हैं।

भारत के लिए अवसर:

  • तकनीकी नेतृत्व: भारत यदि थोरियम SMR तकनीक में आत्मनिर्भर बन जाता है, तो वह एशिया और अफ्रीका जैसे विकासशील क्षेत्रों को यह समाधान निर्यात कर सकता है।
  • रणनीतिक सहयोग: ROSATOM जैसे विश्वस्तरीय साझेदारों के साथ जुड़ाव भारत की अंतरराष्ट्रीय साख को और बढ़ाएगा।

कूटनीतिक पहलू: भारत-रूस संबंधों में नई ऊर्जा

भारत और रूस के बीच दशकों पुराने रणनीतिक संबंध रहे हैं, विशेषकर रक्षा और ऊर्जा क्षेत्र में। इस समझौते से द्विपक्षीय रिश्ते और मजबूत होंगे:

  • टेक्नोलॉजी ट्रांसफर का लाभ
  • भविष्य में अन्य परमाणु परियोजनाओं की संभावना
  • भारतीय वैज्ञानिकों को वैश्विक विशेषज्ञता के साथ कार्य करने का अवसर

चुनौतियां और समाधान

1. जन स्वीकृति और सामाजिक बाधाएं

परमाणु ऊर्जा को लेकर अब भी समाज में कई भ्रांतियां और डर हैं। इसके समाधान के लिए सरकार को पारदर्शी संवाद, जन जागरूकता अभियान और वैज्ञानिक प्रमाणों के माध्यम से विश्वास पैदा करना होगा।

2. नियामक स्पष्टता और ढांचा

भारत में SMR तकनीक के लिए एक स्पष्ट नियामक ढांचा बनाना जरूरी है। इसके लिए Atomic Energy Regulatory Board (AERB) को नई गाइडलाइंस और परीक्षण मानकों को स्थापित करना होगा।

3. प्रारंभिक निवेश और पूंजीगत लागत

हालांकि SMR की संचालन लागत कम होती है, लेकिन शुरुआती निवेश भारी हो सकता है। इसके लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल अपनाया जा सकता है, जिससे सरकारी वित्तीय दबाव कम हो सके।


भविष्य की संभावनाएं

  1. अन्य राज्यों के लिए मॉडल: यदि महाराष्ट्र का मॉडल सफल होता है, तो गुजरात, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश जैसे तटीय राज्य भी SMR स्थापित करने में रुचि दिखा सकते हैं।

  2. वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा: इससे भारत में परमाणु विज्ञान, मटेरियल साइंस और रिएक्टर डिजाइन जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान को बढ़ावा मिलेगा।

  3. रोजगार और स्किल डेवलपमेंट: हजारों कुशल और अर्ध-कुशल रोजगार सृजित होंगे, विशेषकर इंजीनियरिंग, मेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमेशन और कंट्रोल सिस्टम क्षेत्रों में।


निष्कर्ष: भारत के ऊर्जा भविष्य की आधारशिला

महाराष्ट्र और ROSATOM के बीच यह समझौता सिर्फ तकनीकी सहयोग नहीं, बल्कि भारत के ऊर्जा आत्मनिर्भरता, जलवायु लक्ष्यों और वैश्विक नेतृत्व की ओर एक ठोस कदम है। थोरियम आधारित SMR भारत को ऐसी ऊर्जा व्यवस्था प्रदान कर सकता है जो सस्ती, सुरक्षित, टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल हो।

यह पहल न केवल ‘मेक इन इंडिया’ को सशक्त करती है, बल्कि भारत को वैश्विक Green Nuclear Innovation Leader बनाने की दिशा में निर्णायक कदम भी साबित हो सकती है।


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