संयुक्त राष्ट्र की 'प्रौद्योगिकी एवं नवाचार रिपोर्ट 2025': समावेशी AI विकास की दिशा में एक रोडमैप
संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन (UNCTAD) ने हाल ही में "प्रौद्योगिकी एवं नवाचार रिपोर्ट 2025" जारी की है, जिसमें वैश्विक स्तर पर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के प्रभाव, अवसरों और चुनौतियों पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला गया है। इस रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि AI तकनीक केवल विकसित देशों या बड़ी कंपनियों तक सीमित न रह जाए, बल्कि यह वैश्विक समावेशी विकास को गति प्रदान करे।
AI की वैश्विक क्षमता और आर्थिक मूल्य
रिपोर्ट के अनुसार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अगले दशक में वैश्विक अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनकर उभरेगा। 2033 तक वैश्विक AI बाजार का अनुमानित मूल्य 4.8 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच सकता है। इसका सीधा अर्थ यह है कि सरकारें, कंपनियाँ और समाज के विभिन्न वर्गों को इस परिवर्तन के लिए तैयार रहना होगा।
AI न केवल औद्योगिक प्रक्रियाओं को स्वचालित करेगा बल्कि कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, परिवहन और पर्यावरण जैसे क्षेत्रों में भी क्रांति ला सकता है। रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया है कि यदि AI का सही दिशा में उपयोग किया जाए, तो यह सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने में एक महत्वपूर्ण सहायक बन सकता है।
नौकरियों पर प्रभाव: अवसर और चुनौतियाँ
AI की बढ़ती उपस्थिति से वैश्विक स्तर पर 40% नौकरियाँ प्रभावित हो सकती हैं। यह प्रभाव दोहरे रूप में सामने आएगा:
- उत्पादकता में वृद्धि: AI की मदद से कई प्रक्रियाएँ तेज़ और कुशल बनेंगी, जिससे अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा।
- ऑटोमेशन का खतरा: खासकर मैनुअल और दोहराव वाले कार्यों में ऑटोमेशन के कारण कई नौकरियाँ खत्म होने की आशंका है।
रिपोर्ट इस बात पर जोर देती है कि नीति निर्माताओं को AI के कारण उत्पन्न होने वाले रोजगार संकट का समाधान ढूँढ़ना होगा। इसके लिए शिक्षा प्रणाली में बदलाव, कौशल उन्नयन और पुनः प्रशिक्षण (reskilling) की आवश्यकता है।
वैश्विक स्तर पर कॉर्पोरेट प्रभुत्व और असमानता
AI विकास और अनुसंधान पर वर्तमान में वैश्विक निवेश अत्यधिक असमान है। रिपोर्ट के कुछ प्रमुख निष्कर्ष:
- वैश्विक कॉर्पोरेट R&D खर्च का 40% केवल 100 कंपनियों द्वारा किया जा रहा है।
- इन कंपनियों में अधिकांश अमेरिका और चीन की हैं।
- वैश्विक AI निजी निवेश का लगभग 70% हिस्सा अमेरिका द्वारा किया जा रहा है।
यह एक बड़ा संकेत है कि यदि यह प्रवृत्ति जारी रही, तो वैश्विक दक्षिण (अर्थात विकासशील देश) इस तकनीकी दौड़ में पिछड़ सकते हैं। यह तकनीकी विभाजन आगे चलकर सामाजिक और आर्थिक असमानता को और बढ़ा सकता है।
समावेशी AI विकास के लिए आगे की रणनीति
UNCTAD रिपोर्ट केवल समस्याओं की पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके समाधान के लिए एक स्पष्ट रोडमैप भी प्रस्तुत करती है:
1. विकासशील देशों में AI को अपनाने को बढ़ावा देना
- स्थानीय जरूरतों के अनुरूप AI समाधान विकसित करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, भारत जैसे देशों में स्वास्थ्य और कृषि संबंधी AI मॉडल ज्यादा उपयोगी हो सकते हैं।
- डिजिटल बुनियादी ढांचे को मजबूत करना, विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में।
- कौशल विकास कार्यक्रमों का आयोजन कर तकनीकी शिक्षा को जन-सुलभ बनाना।
2. अंतरराष्ट्रीय सहयोग और साझेदारी
- वैश्विक तकनीकी कंपनियों, विश्वविद्यालयों और सरकारों को मिलकर AI रिसर्च और नॉलेज ट्रांसफर की दिशा में काम करना चाहिए।
- विकासशील देशों के लिए ओपन-सोर्स AI मॉडल और मुफ्त डेटा संसाधनों की उपलब्धता बढ़ाई जानी चाहिए।
3. कार्यस्थल पर मानव-केंद्रित दृष्टिकोण अपनाना
- AI को केवल एक स्वचालन उपकरण की तरह नहीं देखना चाहिए, बल्कि इसे कर्मचारियों की उत्पादकता और दक्षता बढ़ाने वाले टूल के रूप में विकसित करना चाहिए।
- कार्यप्रवाह में बदलाव और कर्मचारियों को नई तकनीकों के साथ काम करने के लिए तैयार करना आवश्यक है।
4. सरकारों की भूमिका
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारों को तीन प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए:
- आधारभूत संरचना (Infrastructure): इंटरनेट, डेटा सेंटर, क्लाउड सुविधाएं इत्यादि।
- डेटा प्रबंधन (Data): डेटा गोपनीयता, सुरक्षा और सुलभता।
- कौशल विकास (Skills): AI, मशीन लर्निंग, डेटा एनालिटिक्स आदि में प्रशिक्षण कार्यक्रम।
इन तीनों क्षेत्रों में ठोस निवेश और नीतिगत हस्तक्षेप से ही AI के लाभों को समाज के हर वर्ग तक पहुँचाया जा सकता है।
तकनीकी विभाजन से समावेशी विकास की ओर
“प्रौद्योगिकी एवं नवाचार रिपोर्ट 2025” यह स्पष्ट रूप से दर्शाती है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस केवल तकनीक का मामला नहीं है, बल्कि यह वैश्विक सामाजिक-आर्थिक संरचना को प्रभावित करने वाला कारक है। यदि इसे सही दिशा में निर्देशित किया जाए, तो यह वैश्विक समावेशी विकास का एक मजबूत स्तंभ बन सकता है।
विकासशील देशों को इस तकनीकी परिवर्तन में केवल उपभोक्ता नहीं, बल्कि सक्रिय भागीदार बनने की जरूरत है। इसके लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, नीति समर्थन, वैश्विक सहयोग और समाज के सभी वर्गों की भागीदारी अनिवार्य है।

