Operation Sindoor: Terror के खिलाफ Surgical Strike, जानिए Daily Cost कितना हुआ भारत को

ऑपरेशन सिंदूर: पाकिस्तान को करारा जवाब, लेकिन भारत ने हर दिन कितने करोड़ खर्च किए?


ऑपरेशन सिंदूर में भारत का खर्च: रोज़ाना कितने करोड़ खर्च हुए? पूरी रिपोर्ट

WORLD HEADLINES | विशेष रिपोर्ट | 17 मई 2025


 एक हमला जिसने बदल दी रणनीति

22 अप्रैल 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आत्मघाती आतंकी हमले ने पूरे देश को गहरे शोक और आक्रोश में डुबो दिया। यह हमला महज एक आतंकी घटना नहीं थी, बल्कि भारत की संप्रभुता और सुरक्षा व्यवस्था को चुनौती देने वाला दुस्साहस था। इस हमले में सुरक्षाबलों के कई जवान शहीद हुए और कई नागरिकों की जान गई। देशभर में गुस्से की लहर फैल गई, और सवाल उठा—क्या अब भी हम सिर्फ निंदा करेंगे, या कुछ ठोस कार्रवाई भी करेंगे?

भारत सरकार ने इस बार शब्दों के बजाय हथियारों का सहारा लिया। 6 मई की रात एक हाई-प्रिसिशन, मल्टी-डोमेन मिलिट्री ऑपरेशन लॉन्च किया गया—नाम था "ऑपरेशन सिंदूर"। यह केवल एक सैन्य कार्रवाई नहीं, बल्कि भारत की नई रक्षा नीति की उद्घोषणा थी—अब आतंक का जवाब सीमा पार जाकर ही दिया जाएगा।


ऑपरेशन सिंदूर: जब तीनों सेनाएं एक सुर में गरजीं

ऑपरेशन सिंदूर को भारतीय थलसेना, वायुसेना और नौसेना ने संयुक्त रूप से अंजाम दिया। इसका उद्देश्य था—पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करना और आतंक के आकाओं को खत्म करना। यह ऑपरेशन 6 से 10 मई तक चला और इस दौरान दुश्मन को सांस लेने तक का मौका नहीं मिला।

इस ऑपरेशन को खास बनाने वाली बात यह थी कि इसे रात के अंधेरे में अत्यंत गोपनीयता और सटीकता के साथ अंजाम दिया गया। भारत ने इसमें अपने सबसे अत्याधुनिक हथियार और तकनीक का प्रयोग किया। यह स्पष्ट संकेत था कि भारत अब रक्षात्मक नहीं, बल्कि आक्रामक रणनीति अपना चुका है।


इस्तेमाल हुए हथियार: आधुनिकता और सटीकता का संगम

ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना ने जो हथियार और तकनीक इस्तेमाल किए, उन्होंने यह साबित कर दिया कि भारत अब किसी भी मोर्चे पर कमजोर नहीं है।

  • S-400 एयर डिफेंस सिस्टम: रूस से खरीदी गई इस प्रणाली की यूनिट लागत लगभग ₹12,000 करोड़ है। यह दुश्मन के किसी भी हवाई हमले को नाकाम करने में सक्षम है।
  • ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल: भारत-रूस की संयुक्त परियोजना से विकसित ये मिसाइलें बेहद सटीक निशाना लगाती हैं। एक मिसाइल की लागत ₹25-30 करोड़ के बीच है।
  • हारोप कामिकेज़ ड्रोन (इज़रायली तकनीक): ये ड्रोन दुश्मन पर खुद को गिराकर उसे खत्म कर देते हैं। एक ड्रोन की कीमत ₹7-10 करोड़ तक होती है।
  • लोइटरिंग म्यूनिशन: ये अत्याधुनिक हथियार दुश्मन की स्थिति पर मंडराते रहते हैं और सही समय पर हमला करते हैं।
  • सैटेलाइट इमेजिंग, साइबर इंटेलिजेंस, और AI-बेस्ड टारगेटिंग: दुश्मन की हर गतिविधि पर नजर रखने के लिए इनका बड़े स्तर पर इस्तेमाल किया गया।

आतंकियों के नेटवर्क को मिली गहरी चोट

ऑपरेशन सिंदूर के तहत जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे आतंकी संगठनों के कई टॉप कमांडरों को निशाना बनाकर मारा गया। उनके लॉन्च पैड, ट्रे​निंग कैंप और लॉजिस्टिक्स बेस को ध्वस्त कर दिया गया। यह पहला मौका था जब भारत ने सीमापार जाकर इतने सुनियोजित ढंग से आतंक के गढ़ों पर हमला किया।

पाकिस्तान को इस ऑपरेशन की भनक तब लगी जब उसके कई आतंकी ठिकाने और गुप्त कम्युनिकेशन नेटवर्क एक-एक करके नष्ट हो गए। इसके बाद पाकिस्तान की सेना और सरकार चार दिन तक सदमे में रही और 10 मई को युद्धविराम की घोषणा कर दी गई।


आर्थिक असर: रोज़ाना खर्च कितना हुआ?

ऑपरेशन सिंदूर में भारत का खर्च: रोज़ाना कितने करोड़ खर्च हुए? पूरी रिपोर्ट

अब बात करते हैं उस पहलू की, जो अक्सर सुर्खियों में नहीं रहता—युद्ध या सैन्य कार्रवाई की लागत। एक देश की सैन्य क्षमता केवल हथियारों से नहीं, बल्कि उसकी आर्थिक शक्ति से भी मापी जाती है।

संयुक्त राष्ट्र फॉरेन अफेयर्स फोरम और स्वतंत्र रक्षा विश्लेषकों की रिपोर्ट के अनुसार, ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत का प्रतिदिन का संभावित खर्च ₹1460 करोड़ से ₹5000 करोड़ तक रहा। ऑपरेशन कुल 4 दिन चला, इस हिसाब से कुल अनुमानित खर्च रहा:

  • न्यूनतम खर्च: ₹5840 करोड़
  • अधिकतम खर्च: ₹20,000 करोड़

खर्च के पीछे की वजहें

  1. हाई-एंड हथियारों की तैनाती – जैसे S-400, ब्रह्मोस मिसाइल, हारोप ड्रोन आदि।
  2. 24x7 ऑपरेशनल मेंटेनेंस और लॉजिस्टिक्स – युद्ध की स्थिति में लॉजिस्टिक्स सपोर्ट तिगुना महंगा हो जाता है।
  3. फ्यूल और एयरफोर्स की एक्टिविटी – फाइटर जेट्स और ड्रोन्स की लगातार उड़ानें।
  4. इंटेलिजेंस एंड सर्विलांस – लाइव सैटेलाइट इमेजिंग और साइबर ऑप्स के भारी खर्चे।
  5. कम्युनिकेशन ब्लैकआउट और साइबर डिफेंस – पाकिस्तान की इंटरनल नेटवर्क को जाम करने में हाई-एंड टेक्नोलॉजी की जरूरत होती है।

तुलना: कारगिल युद्ध बनाम ऑपरेशन सिंदूर

1999 के कारगिल युद्ध के दौरान भारत को रोजाना करीब ₹1460 करोड़ खर्च करने पड़े थे। बीते 26 वर्षों में महंगाई में औसतन 3.6 गुना इजाफा हुआ है। इस हिसाब से ऑपरेशन सिंदूर का खर्च भी उसी अनुपात में अधिक होना स्वाभाविक है।

लेकिन फर्क सिर्फ खर्च में नहीं, रणनीति में भी है। कारगिल युद्ध जहां सीमित क्षेत्र तक सीमित था, वहीं ऑपरेशन सिंदूर ने रणनीतिक गहराई में जाकर दुश्मन के अंदर घुसकर हमला किया।


तकनीक ने बनाई बढ़त

इस ऑपरेशन में तकनीक निर्णायक साबित हुई। भारत ने इज़रायली तकनीक, अमेरिकी सेंसर, स्वदेशी मिसाइलें और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का ऐसा तालमेल दिखाया कि पाकिस्तान की जवाबी क्षमता ठप हो गई। सटीक डेटा, फास्ट नेटवर्किंग, और लाइव ट्रैकिंग की मदद से दुश्मन की हर चाल विफल रही।


क्या यह खर्च जायज़ था?

यह सवाल कई लोग पूछ सकते हैं कि क्या ₹20,000 करोड़ तक का खर्च वाजिब था? इसका जवाब है—हाँ, पूरी तरह से। क्योंकि यह सिर्फ रुपये नहीं थे, बल्कि भारत की संप्रभुता की रक्षा में लगा हर एक पैसा था। इससे जो संदेश पाकिस्तान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गया—वह अनमोल है।


WORLD HEADLINES का निष्कर्ष: बदलती सोच, बदलता भारत

ऑपरेशन सिंदूर ने यह साबित कर दिया कि नया भारत अब सिर्फ प्रतिक्रिया नहीं देता, बल्कि पहले वार करता है—वो भी सटीक और निर्णायक। चाहे खर्च कुछ भी हो, भारत अब यह स्पष्ट कर चुका है कि आतंकवाद को सीमा पार भी सुरक्षित पनाह नहीं मिलेगी।

यह एक सैन्य कार्रवाई थी, लेकिन इसका प्रभाव पाकिस्तान की राजनीति, कूटनीति और मनोबल तीनों पर पड़ा। यह ऑपरेशन भारत की सैन्य शक्ति, आर्थिक मजबूती और रणनीतिक समझ का प्रदर्शन था।


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