भारत का बढ़ता रक्षा बजट और सैन्य ताकत: दुनिया के सामने उभरी नई शक्ति
22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने जिस तेजी और निर्णायकता से प्रतिक्रिया दी, उसने न केवल आतंकियों को माकूल जवाब दिया, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी सैन्य क्षमता का परिचय दिया। इस हमले में शामिल आतंकियों और उनके आकाओं के खिलाफ भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ नामक विशेष सैन्य कार्रवाई को अंजाम दिया, जिसके तहत पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में मौजूद कई आतंकी ठिकानों को सफलतापूर्वक ध्वस्त कर दिया गया।
भारत की यह कार्रवाई केवल जवाबी हमला नहीं था, बल्कि यह एक रणनीतिक सन्देश भी था—कि भारत अब केवल सहन करने वाला देश नहीं रहा, बल्कि अपनी संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। पाकिस्तान द्वारा इस पर विरोध जताना और बार-बार सीमा पर उकसावे की कोशिशें करना भी दर्शाता है कि उसे भारत की इस नई सैन्य नीति से गहरा झटका लगा है।
कैसे भारत बना सैन्य शक्ति: रक्षा बजट में ऐतिहासिक बढ़ोतरी
भारत की सैन्य ताकत का यह प्रदर्शन अचानक नहीं हुआ। यह उस निरंतर योजना और निवेश का नतीजा है जो पिछले एक दशक से अधिक समय से चल रहा है। रक्षा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, भारत का रक्षा बजट पिछले लगभग 11 वर्षों में ढाई गुना से अधिक बढ़ चुका है। 2013-14 में जहां रक्षा बजट लगभग 2.03 लाख करोड़ रुपये था, वहीं 2024-25 के लिए यह बढ़कर लगभग 6.21 लाख करोड़ रुपये हो गया है।
यह सिर्फ संख्या में वृद्धि नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक रणनीतिक सोच है—भारत को आत्मनिर्भर बनाना, अत्याधुनिक तकनीक से लैस करना और विश्वस्तरीय सैन्य बलों के समकक्ष लाना।
सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण और रणनीतिक सुधार
भारत ने सेना, नौसेना और वायुसेना के आधुनिकीकरण पर विशेष ध्यान दिया है। पुराने और पारंपरिक हथियारों को हटाकर अत्याधुनिक मिसाइल सिस्टम, ड्रोन तकनीक, मल्टी-रोल फाइटर जेट, और स्मार्ट बॉर्डर मैनेजमेंट सिस्टम जैसी अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाया गया है।
- थल सेना को आधुनिक राइफल्स, बुलेटप्रूफ जैकेट, नाइट विज़न डिवाइसेज़ और आर्टिलरी सिस्टम से लैस किया गया है।
- वायुसेना में राफेल फाइटर जेट्स की तैनाती से उसकी हवाई क्षमता में बड़ा उछाल आया है।
- नौसेना को आत्मनिर्भर भारत मिशन के तहत भारत में बने युद्धपोत, पनडुब्बियां और एयरक्राफ्ट कैरियर जैसे INS विक्रांत से सशक्त किया गया है।
भारत की सैन्य रणनीति में साइबर सुरक्षा, अंतरिक्ष आधारित निगरानी प्रणाली और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर भी प्रमुख भूमिका निभा रही हैं।
निजी क्षेत्र की भागीदारी और स्वदेशी रक्षा उत्पादन में क्रांति
मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों के चलते रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में निजी कंपनियों की भागीदारी लगातार बढ़ रही है। टाटा, महिंद्रा, लार्सन एंड टुब्रो जैसी बड़ी कंपनियों ने रक्षा उपकरणों के निर्माण में कदम रखा है। साथ ही, छोटे और मध्यम स्तर के स्टार्टअप्स भी ड्रोन, रडार, कम्युनिकेशन सिस्टम और AI आधारित सैन्य समाधान विकसित कर रहे हैं।
इसका सीधा फायदा यह हुआ है कि भारत अब केवल आयातक देश नहीं रहा, बल्कि एक उभरता हुआ रक्षा निर्यातक भी बन चुका है। रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2023-24 में 16,000 करोड़ रुपये से अधिक के रक्षा उपकरणों का निर्यात कर चुका है। इसमें सबसे ज्यादा मांग अफ्रीकी देशों, दक्षिण एशिया, और मध्य-एशिया से आ रही है।
रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता: रोजगार और आर्थिक मजबूती
रक्षा क्षेत्र में निवेश बढ़ने से देश में आर्थिक मजबूती भी आई है। देश में रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में बढ़ते निवेश से लाखों नए रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं। विभिन्न राज्य सरकारें भी रक्षा कॉरिडोर विकसित कर रही हैं, जैसे उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में, जहां रक्षा उपकरण निर्माण के लिए विशेष ज़ोन बनाए गए हैं।
इससे युवाओं को न केवल तकनीकी क्षेत्र में करियर के अवसर मिल रहे हैं, बल्कि देश की सुरक्षा में भागीदारी की भावना भी विकसित हो रही है।
सैटेलाइट निगरानी: खुफिया व्यवस्था की नई रीढ़
आज की सैन्य कार्रवाई केवल हथियारों और सैनिकों तक सीमित नहीं है, बल्कि खुफिया तंत्र और सैटेलाइट निगरानी की भूमिका भी बेहद अहम हो गई है। इसरो और DRDO ने मिलकर देश की निगरानी क्षमताओं को एक नई ऊंचाई पर पहुंचाया है।
हाल ही में सामने आई रिपोर्ट के अनुसार, पहलगाम, पुलवामा, अनंतनाग, पुंछ, राजौरी और बारामुल्ला जैसे संवेदनशील क्षेत्रों की सैटेलाइट इमेज प्राप्त की गई हैं। इन इमेज की बेस कीमत लगभग 3 लाख रुपये है, जो रेजोल्यूशन और विश्लेषण की जटिलता के आधार पर और भी बढ़ सकती है।
इसरो के एक वैज्ञानिक के मुताबिक, “सैटेलाइट इमेजिंग अब किसी भी देश की खुफिया रणनीति की रीढ़ बन चुकी है। इससे न केवल आतंकी गतिविधियों की निगरानी संभव होती है, बल्कि सीमाओं पर होने वाली हर हलचल पर भी नजर रखी जा सकती है।”
भारत अब अमेरिका की मैक्सार जैसी कंपनियों से भी सैटेलाइट इमेज की वैधता की जांच करने की योजना बना रहा है, ताकि यह पता चल सके कि हालिया हमलों की योजना के पीछे कौन सी ताकतें थीं।
सैन्य रणनीति में बदलाव: जवाब का तरीका बदला
पहले भारत की नीति रक्षात्मक थी—जब हमला होता था तभी प्रतिक्रिया दी जाती थी। लेकिन हालिया वर्षों में यह सोच बदली है। अब भारत 'पहले जवाब, फिर सवाल' की नीति अपना रहा है। बालाकोट एयरस्ट्राइक, उरी सर्जिकल स्ट्राइक, और अब ऑपरेशन सिंदूर इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।
भारत अब आतंक के खिलाफ वैश्विक मंचों पर भी मुखर है और हर उस देश को चेतावनी दे रहा है जो आतंक को पनाह देता है। पाकिस्तान के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ाने की रणनीति ने भी कूटनीतिक मोर्चे पर भारत को मजबूत किया है।
वैश्विक मंच पर भारत की सैन्य छवि
भारत की सैन्य ताकत का लोहा अब दुनिया मान रही है। अमेरिका, रूस, फ्रांस, इजरायल जैसे देशों के साथ भारत की रक्षा साझेदारी गहरी हुई है। भारत न केवल इन देशों से अत्याधुनिक हथियार खरीद रहा है, बल्कि तकनीकी ट्रांसफर के जरिए अपनी उत्पादन क्षमता भी बढ़ा रहा है।
इसके साथ ही, भारत अब संयुक्त सैन्य अभ्यासों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है—जैसे मालाबार, गरुड़, इंद्र और वार्षिक वज्र अभ्यास, जिससे भारतीय सेना की वैश्विक पहचान और भरोसेमंद छवि बनी है।
भारत अब तैयार है हर चुनौती के लिए
पहलगाम आतंकी हमला भारत के लिए एक चेतावनी था, लेकिन भारत ने इसे केवल एक सुरक्षा चूक मानकर नहीं छोड़ा। इसके जवाब में जो तेजी, तकनीकी दक्षता और सामरिक चतुराई दिखाई गई, वह आज के आत्मनिर्भर और सशक्त भारत की पहचान है।
भारत का रक्षा बजट, सैन्य आधुनिकीकरण, स्वदेशी उत्पादन, अंतरिक्ष निगरानी और वैश्विक कूटनीति—ये सभी पहलू एक साथ मिलकर एक मजबूत और सुरक्षित राष्ट्र की नींव रख रहे हैं। भारत अब न केवल अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर शांति, स्थिरता और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एक निर्णायक शक्ति बन चुका है।
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